Book Title: Ashtapahud Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 77
________________ सद्गुणों की मणिमाल जिनमत गगन में मुनि निशाकर। तारावली परिवेष्ठित हैं शोभते पूर्णेन्दु सम ।।१६०॥ चक्रधर बलराम केशव इन्द्र जिनवर गणपति । अर ऋद्धियों को पा चुके जिनके हैं भाव विशुद्धवर ॥१६॥ जो अमर अनुपम अतुल शिव अर परम उत्तम विमल है। पा चुके ऐसा मुक्ति सुख जिनभावना भा नेक नर ॥१६२॥ जो निरंजन हैं नित्य हैं त्रैलोक्य महिमावंत हैं । वे सिद्ध दर्शन-ज्ञान अर चारित्र शुद्धि दें हमें ॥१६३।। इससे अधिक क्या कहें हम धर्मार्थकाम रु मोक्ष में । या अन्य सब ही कार्य में है भाव की ही मुख्यता ॥१६४॥ . (७६)

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