Book Title: Ashtapahud Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 72
________________ इन प्राणियों के घात से योनी चौरासी लाख में। बस जन्मते मरते हुये, दुख सहे तूने आजतक ॥१३५॥ यदि भवभ्रमण से ऊबकर तू चाहता कल्याण है। तोमन वचन अर काय से सब प्राणियों को अभय दे॥१३६।। अक्रियावादी चुरासी बत्तीस विनयावादि हैं। सौ और अस्सी क्रियावादी सरसठ अरे अज्ञानि हैं।।१३७॥ गुड़-दूध पीकर सर्प ज्यों विषरहित होता है नहीं। अभव्य त्यों जिनधर्म सुन अपना स्वभाव तजे नहीं॥१३८॥ मिथ्यात्व से आछन्नबुद्धि अभव्य दुर्मति दोष से। जिनवरकथित जिनधर्म की श्रद्धा कभी करता नहीं।।१३९।। (७१)

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