Book Title: Ashtapahud Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ तप त कुत्सित और कुत्सित साधु की भक्ति करें। कुत्सित गति को प्राप्त हों रे मूढ़ कुत्सितधर्मरत ।।१४०।। कुनय अर कुशास्त्र मोहित जीव मिथ्यावास में । घूमा अनादिकाल से हे धीर ! सोच विचार कर॥१४१॥ तीन शत त्रिषष्ठि पाखण्डी मतों को छोड़कर । जिनमार्ग में मन लगा इससे अधिक मुनिवर क्या कहें॥१४२।। ५ अरे समकित रहित साधु सचल मुरदा जानियें। अपूज्य है ज्यों लोक में शव त्योंहि चलशव मानिये॥१४३।। तारागणों में चन्द्र ज्यों अर मृगों में मृगराज ज्यों। श्रमण-श्रावक धर्म में त्यों एक समकित जानिये।।१४४।। (७२)

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114