Book Title: Ashtapahud Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 62
________________ रागादि विरहित आतमा रत आतमा ही धर्म है। भव तरण-तारण धर्म यह जिनवर कथन का मर्म है।।८५॥ जो नहीं चाहे आतमा अर पुण्य ही करता रहे । वह मुक्ति को पाता नहीं संसार में रुलता रहे ॥८६॥ इसलिए पूरी शक्ति से निज आतमा को जानकर। श्रद्धा करो उसमें रमो नित मुक्तिपद पा जाओगे।।८७।। सप्तम नरक में गया तन्दुल मत्स्य हिंसक भाव से। यह जानकर हे आत्मन् ! नित करो आतमभावना ।।८८॥ आतमा की भावना बिन गिरि-गुफा आवास सब। अर ज्ञान अध्ययन आदि सब करनी निरर्थक जानिये॥८९॥ (६१)

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