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निर्लोभ है निर्मोह है निष्कलुष है निर्विकार है । निस्नेह निर्मल निराशा जिन प्रव्रज्या ऐसी कही ॥५०॥ शान्त है है निरायुध नग्नत्व अवलम्बित भुजा । आवास परकृत निलय में जिन प्रव्रज्या ऐसी कही ॥५१॥ उपशम क्षमा दम युक्त है श्रृंगारवर्जित रूक्ष है । मदरागरुस से रहित है जिनप्रव्रज्या ऐसी कही ॥५२॥ मूढ़ता विपरीतता मिथ्यापने से रहित है। सम्यक्त्व गुण से शुद्ध है जिन प्रवज्या ऐसी कही ॥५३॥ जिनमार्ग में यह प्रव्रज्या निर्ग्रन्थता से युक्त है। भव्य भावे भावना यह कर्मक्षय कारण कही ॥५४॥
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