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राग-द्वेष विकार वर्जित विकल्पों से पार हैं। कषायमल से रहित केवलज्ञान से परिपूर्ण हैं ॥४०॥ सद्दृष्टि से सम्पन्न अर सब द्रव्य-गुण-पर्याय को। जो देखते अर जानते जिननाथ वे अरिहंत हैं॥४१।। शून्यघर तरुमूल वन उद्यान और मसान में। वसतिका में रहें या गिरिशिखर पर गिरिगुफा में॥४२॥ चैत्य आलय तीर्थ वच स्ववशासक्तस्थान में। जिनभवन में मुनिवर रहें जिनवर कहें जिनमार्ग में॥४३॥ इन्द्रियजयी महाव्रतधनी निरपेक्ष सारे लोक से। निजध्यानरत स्वाध्यायरत मुनिश्रेष्ठ ना इच्छा करें॥४४॥
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