Book Title: Ashtapahud Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 51
________________ रतन त्रय के बिना होता रहा है यह परिणमन। तुम रतन त्रय धारण करो बस यही है जिनवर कथन॥३०॥ निज आतमा को जानना सद्ज्ञान रमना चरण है। निज आतमारत जीव सम्यग्दृष्टि जिनवर कथन है॥३१॥ तूने अनन्ते जनम में कुमरण किये हे आत्मन् । अब तो समाधिमरण की भा भावना भवनाशनी॥३२॥ धरकर दिगम्बर वेष बारम्बार इस त्रैलोक में। स्थान कोई शेष ना जन्मा-मरा ना हो जहाँ॥३३।। रे भावलिंग बिना जगत में अरे काल अनंत से। हा ! जन्म और जरा-मरण के दुःख भोगे जीव ने॥३४॥ (५०)

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