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महाव्रत हों पाँच गुप्ती तीन से संयुक्त हों। निरग्रन्थ मुक्ती पथिक वे ही वंदना के योग्य हैं।॥२०॥ जिनमार्ग में उत्कृष्ट श्रावक लिंग होता दूसरा। भिक्षा ग्रहण कर पात्र में जो मौन से. भोजन करे॥२१॥ अर नारियों का लिंग तीजा एक पट धारण करें। वह नग्न ना हो दिवस में इकबार ही भोजन करें॥२२॥ सिद्ध ना हो वस्त्रधर वह तीर्थकर भी क्यों न हो। बस नग्नता ही मार्ग है अर शेष सब उन्मार्ग हैं ॥२३॥ नारियों की योनि नाभी काँख अर स्तनों में। जिन कहे हैं बहु जीव सूक्षम इसलिए दीक्षा न हो॥२४॥
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