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चारित्रपाहुड़
सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी अमोही अरिहंत जिन । त्रैलोक्य से हैं पूज्य जो उनके चरण में कर नमन ॥ १ ॥ ज्ञान-दर्शन-चरण सम्यक् शुद्ध करने के लिए । चारित्रपाहुड़ कहूँ मैं शिवसाधना का हेतु जो ॥२॥ जो जानता वह ज्ञान है जो देखता दर्शन कहा। समयोग दर्शन - ज्ञान का चारित्र जिनवर ने कहा || ३ || तीन ही ये भाव जिय के अखय और अमेय हैं । इन तीन के सुविकास को चारित्र दो विध जिन कहा ॥४॥ ( २१ )