Book Title: Ashtapahud Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 23
________________ है प्रथम सम्यक्त्वाचरण जिन ज्ञानदर्शन शुद्ध है । है दूसरा संयमचरण जिनवर कथित परिशुद्ध है ॥५॥ सम्यक्त्व के जो दोष मल शंकादि जिनवर ने कहे। मन-वचन - तन से त्याग कर सम्यक्त्व निर्मल कीजिए ॥६॥ निशंक और निकांक्ष अर निग्लन दृष्टि- अमूढ़ है । उपगूहन अर थितिकरण वात्सल्य और प्रभावना ॥७॥ इन आठ गुण से शुद्ध सम्यक् मूलतः शिवथान है। सद्ज्ञानयुत आचरण यह सम्यक्चरण चारित्र है ॥८॥ सम्यक्चरण से शुद्ध अर संयमचरण से शुद्ध हों । वे समकिती सद्ज्ञानिजन निर्वाण पावें शीघ्र ही ॥ ९ ॥ ( २२ )

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