________________
निश्चेल एवं पाणिपात्री जिनवरेन्द्रों ने कहा ।
बस एक है यह मोक्षमारग शेष सब उन्मार्ग हैं ॥१०॥ संयम सहित हों जो श्रमण हों विरत परिग्रहारंभ से । वे वन्द्य हैं सब देव-दानव और मानुष लोक से ॥११॥ निजशक्ति से सम्पन्न जो बाइस परीषह को सहें । अर कर्म क्षय वा निर्जरा सम्पन्न मुनिजन वंद्य हैं ॥ १२ ॥ अवशेष लिंगी वे गृही जो ज्ञान दर्शन युक्त हैं । शुभ वस्त्र से संयुक्त इच्छाकार के वे योग्य हैं ॥१३॥ मर्मज्ञ इच्छाकार के अर शास्त्र सम्मत आचरण । सम्यक् सहित दुष्कर्म त्यागी सुख लहें परलोक में ॥१४॥
( १७ )
•