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सूत्रपाहुड़
अरहंत-भासित ग्रथित-गणधर सूत्र से ही श्रमणजन। परमार्थ का साधन करें अध्ययन करो हे भव्यजन ॥१॥ जो भव्य हैं वे सूत्र में उपदिष्ट शिवमग जानकर । जिनपरम्परा से समागत शिवमार्ग में वर्तन करें॥२॥ डोरा सहित सुइ नहीं खोती गिरे चाहे वन-भवन । संसार-सागर पार हों जिनसूत्र के ज्ञायक श्रमण ॥३॥ संसार में गत गृहीजन भी सूत्र के ज्ञायक पुरुष। निज आतमा के अनुभवन से भवोदधि से पार हों॥४॥
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