Book Title: Ashtapahud Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 13
________________ सहज जिनवर लिंग लख ना नमें मत्सर भाव से। बस प्रगट मिथ्यादृष्टि हैं संयम विरोधी जीव वे ॥२४॥ अमर वंदित शील मण्डित रूप को भी देखकर। ना नमें गारब करें जो सम्यक्त्व विरहित जीव वे॥२५।। असंयमी ना वन्द्य है दृगहीन वस्त्रविहीन भी। दोनों ही एक समान हैं दोनों ही संयत हैं नहीं॥२६।। ना वंदना हो देह की कुल की नहीं ना जाति की। कोई करे क्यों वंदना गुणहीन श्रावक-साधु की॥२७।। गुण शील तप सम्यक्त्व मंडित ब्रह्मचारी श्रमण जो। शिवगमन तत्पर उन श्रमण को शुद्धमन से नमन हो॥२८॥ (१२)

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