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छह द्रव्य नव तत्त्वार्थ जिनवर देव ने जैसे कहे। है वही सम्यग्दृष्टि जो उस रूप में ही श्रद्धहै ।।१९।। जीवादि का श्रद्धान ही व्यवहार से सम्यक्त्व है। पर नियतनय से आत्म का श्रद्धान ही सम्यक्त्व है॥२०॥ जिनवरकथित सम्यक्त्व यह गुण रतनत्रय में सार है। सद्भाव से धारण करो यह मोक्ष का सोपान है।।२१।। जो शक्य हो वह करें और अशक्य की श्रद्धा करें। श्रद्धान ही सम्यक्त्व है इस भाँति सब जिनवर कहें॥२२॥ ज्ञान दर्शन चरण में जो नित्य ही संलग्न हैं। गणधर करें गुण कथन जिनके वे मुनीजन वंद्य हैं॥२३॥