Book Title: Ashtapahud Padyanuwad Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 9
________________ जो जानते हों शास्त्र सब पर भ्रष्ट हों सम्यक्त्व से । घूमें सदा संसार में आराधना से रहित वे ॥४॥ यद्यपि करें वे उग्रतप शत सहस-कोटि वर्ष तक । पर रत्नत्रय पावें नहीं सम्यक्त्व विरहित साधु सब ॥ ५ ॥ सम्यक्त्व दर्शन ज्ञान बल अर वीर्य से वर्द्धमान जो । वे शीघ्र ही सर्वज्ञ हों, कलिकलुसकल्मस रहित जो ॥ ६ ॥ सम्यक्त्व की जलधार जिनके नित्य बहती हृदय में । वे कर्मरज से ना बंधे पहले बंधे भी नष्ट हों ||७|| जो ज्ञान दर्शन - भ्रष्ट हैं चारित्र से भी भ्रष्ट हैं। वे भ्रष्ट करते अन्य को वे भ्रष्ट से भी भ्रष्ट हैं ॥ ८॥ ( ८ ) -Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 114