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२८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दो प्रेमाख्यानक
आख्यान शब्द की व्युत्पत्ति (आ+ ख्या + ल्युट ( अन् ) भावे ) की गई है। सामान्य और विशेष के भेद से इसके दो अर्थ किये गये हैं : (क) सामान्य अर्थ : १. कथन, निवेदन, उक्ति. २. कथा, कहानी.
३. प्रतिवचन. ४. उत्तर ( यथा : अनन्त्यस्यापि
प्रश्नाख्यानयोः )-अष्टाध्यायी, ८. २. १०५. (ख) विशेष अर्थ : १. भेदक धर्म ( इस अर्थ में उपर्युक्त 'ल्युट्' प्रत्यय 'भाव'
( क्रियापद से प्रकट होने वाला कर्म ) अर्थ न होकर 'करण' अर्थ में गृहीत होगा एवं 'आख्यायते अनेनेति-आख्यानम्' यह व्युत्पत्ति होगी।) इस शब्द का इस अर्थ में प्रयोग 'लक्षणेत्थंभूताख्यानभागवीप्सासु प्रतिपर्यनवः' ( अष्टाध्यायी, १. ४.९० ) में हुआ है।' २. पुरावृत्तकथन ('आख्यानं पूर्ववृत्तोक्तिः' सा० द० ), ऐतिहासिक कहानी, पौराणिक कथा ।'
वेदों में आये हुए ऐसे ही आख्यानों का संग्रह 'पुराणसंहिता' नाम से अथर्ववेद में उल्लिखित है। जैसे, सुपर्ण और पुरुरवा इत्यादि के आख्यान ऋग्वेद में मिलते हैं। मनुस्मृति के तृतीयाध्याय में पितृश्राद्ध के अवसर पर किये जाने वाले कर्मों के विवरण में लिखा है : स्वाध्यायं श्रावयेतपित्रये धर्मशास्त्राणि चैव हि। आख्यानानीतिहासांश्च पुराणानि खिलानि च ॥
-मनुस्मृति, ३. २३२. इसी पर कुल्लक भट्ट ने मन्वर्थमुक्तावली में व्याख्यान लिखते हुए लिखा है : 'आख्यानानि सौपर्णमैत्रावरुणादीनि।' ३. महाभारत इत्यादि इतिहास ग्रन्थ : अनेक आख्यानों एवं
उपाख्यानों का 'जय' नामक इतिहास ग्रन्थ में ( वर्तमान महाभारत के मूल रूप में) संग्रह होने के कारण ही परिवद्धित महाभारत को आख्यान-काज्य का नाम प्राप्त हुआ होगा।
१. देखिये, तारानाथकृत वाचस्पत्यम् कोश.