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हिन्दी प्रेमाख्यानों का ऐतिहासिक विकास : ८१
लिखकर चली आई कि तूने अभी भिक्षा के योग्य योग नहीं सीखा है, जब समय आया तो तू सो गया ।
रतनसेन को जब चेत हुआ तो वह जल मरने को उद्यत हुआ । परन्तु उसके प्रेम को सच्चा जानकर शिव-पार्वती ने साक्षात् उपस्थित होकर उसे आश्वस्त किया और एक सिद्धि - गुटिका प्रदान की । इस गुटिका की शक्ति से राजा ने योगियों के साथ गढ़ में प्रवेश किया। गंधर्वसेन ने रतनसेन को पकड़कर फाँसी पर लटका देने की आज्ञा दी। एक योगी को आपत्ति में देख पार्वती और शिव भाट - दम्पति के रूप में आये और रतनसेन राजा को पद्मावती के योग्य वर कहकर गंधर्वसेन से कहा कि वह पद्मावती का विवाह इससे कर दे । गंधर्वसेन के क्रोधित होने पर योगी भी क्रोधित हो गये। किसी प्रकार गंधर्वसेन ने शिव को पहचान लिया और उनके पैरों पर मिरकर क्षमा माँगी । पद्मावती का विवाह रतनसेन से सम्पन्न हुआ ।
इधर सिंहलद्वीप में रतनसेन सानन्द रहने लगा। उधर नागमती की वियोग में दुर्दशा हो रही थी। उसके वियोग से पशु-पक्षी भी व्याकुल थे । एक दिन एक पक्षी ने रानी से उसकी व्यथा सुनी और उसका संदेश लेकर सिंहलद्वीप पहुँचा । पक्षी से चित्तौड़ और नागमती का दुःख सुनकर रतनसेन बहुत दुःखित हुआ । कुछ समय बाद वह पद्मावती और अपार धनराशि को लेकर चल पड़ा ।
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"जिन जहाजों से वे लोग आ रहे थे, समुद्र में तूफान आ जाने के कारण सब छिन्न-भिन्न हो गये । सब सम्पत्ति, मित्रादि समुद्र के गर्भ में समाहित हो गये । पद्मावती बहकर समुद्र की कन्या लक्ष्मी के पास पहुंच गई। लक्ष्मी ने जब पद्मावती की कथा सुनी तो उसने अपने पिता से सभी को खोज लाने की प्रार्थना की। समुद्र ने सबको मिला दिया । वे सभी चित्तौड़ वापिस आ गये । नागमती पति को पाकर अति प्रसन्न हुई । राजा रतनसेन के दरबार में राघवचेतन नामक एक पंडित था । उसने एक बार यक्षिणी की सिद्धि राजा को गलत तिथि में द्वितीया बताकर सिद्ध कर दिया। बाद में भेद खुलने पर राजा ने उसे देशनिकाला दे दिया । उसने पद्मावती को देखा और उस पर मुग्ध हो गया । बाद में धन पाने की लालसा से उसने अलाउद्दीन के समीप जाकर पद्मावती के रूप की प्रशंसा को ।
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