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८८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
दे डालती है। शाप के कारण मधुमालतो पक्षी बनकर उड़ जाती है। पक्षी के रूप में उड़ती हुई वह मानगढ़ के कुंवर ताराचन्द को देखती है। ताराचन्द को वह अपनी कहानी बतलाती है । ताराचन्द मनोहर से उसे मिला देने की प्रतिज्ञा करता है। उसे पिंजड़े में साथ लेकर ताराचन्द अपने साथियों के साथ महासरनगर पहुँचता है। मधुमालती के मातापिता को जब यह पता लगता है तो वे उसे शापमुक्त करते हैं। ताराचंद से मधुमालती के विवाह का उन लोगों ने प्रस्ताव किया तो ताराचन्द मधुमालती को अपनी बहन बता देता है। मधुमालती को मां सब' .. समाचार प्रेमा के पास पहुँचाती है। अपनी मां से छिपाकर अपनी एक वर्ष को पक्षीरूप को व्यथा को लिखकर प्रेमा के पास भेजती है। यह सब वर्णन बारहमासे के रूप में है। संयोग से इसी समय मनोहर योगी के वेश में प्रेमा के नगर में पहुंचता है। प्रेमा, और मनोहर का संदेश पाकर : मधमालती के माता-पिता उसे साथ ले प्रेमा के नगर पहुंचते हैं। मनोहर और मधुमालती का विवाह होता है। प्रेमा और ताराचन्द का विवाह हो जाता है। कुछ दिन वहाँ रहने के बाद दोनों दम्पति अपने-अपने घरों को लौट जाते हैं। ___ अन्त में मंझन लिखते हैं कि प्रेम की शरण में जाकर हो कोई काल की चपेट से बच सकता है। प्रेम की शरण-शाला ऐसा स्थान है जहाँ अमृत शोभित होता है और जब तक काव्य-शरीर बना रहता है, प्रेमी का नाम भी इस संसार में बना रहता है।
चित्रावली'-कवि उसमानकृत चित्रावली का रचनाकाल सन् १६१३ है। अन्य सफ़ी प्रेमाख्यानकों की भाँति ही कवि ने घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया है। यौगिक क्रियाएं, जैसे-लुक अंजन लगाकर गायब हो जाना आदि का भी प्रयोग किया है। आश्चर्य तत्त्वों की भी कवि ने योजना की है, जैसे-देव का राजकुमार सुजान को लेकर चित्रसेन के राज्य रूपनगर उड़ जाना और पूनः उसे सूबह तक लाकर मढी में सूला देना । कुछ आश्चर्यजनक घटनाएँ भी हैं, जैसे-अजगर सुजान को निगल जाता है । परन्तु सुजान को विरहज्वाला थी, इससे अजगर का पेट जलने लगा
१. चित्रावली, सम्पा०-जगमोहन वर्मा, प्र०-ना०प्र० सभा, काशी..