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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : १०५ अक्षरों की संघटना काव्य में दुर्लभ है।" जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है आचार्य वामन ने 'रीति' शब्द का प्रथमोल्लेख किया है । वे विशिष्ट पद-रचना का रीति कहते हैं। वामन ने शब्दगुण और अर्थगुण के भेद से गणों के मुख्य दो भेद किये और उन्हें रोति से संबंधित बताया। इन्होंने वैदर्भी, गौडा और पांचालो तीन रीतियाँ मानो हैं। इन तीनों री तयों में से वैदर्भी रीति की वामन ने सर्वाधिक प्रशंसा की है। वैदर्भी का ही अधिक प्रयोग करने को उनकी सलाह है क्योंकि उसमें समस्त गुण पाये जाते हैं । अन्य दोनों में कम गुण पाये जाते हैं। ___ रुद्रट ने उक्त तीनों रोतियों में एक चौथी 'लाटीया' नामक रीति
और जोड़कर इनकी संख्या चार कर दी । इनके अनुसार 'वैदर्भी और पांचाली रातियों का उपयोग शृंगारं तथा करुण रस में होना चाहिए; भयानक, अद्भुत और रौद्र रसो में लाटी और गौडी रीतियों का यथोचित प्रयोग करना चाहिए। आनन्दवर्धनाचार्य ने रीति को संघटना' नाम दिया है। संघटना तीन प्रकार की मानी गई है-१. समासरहित, २. मध्यम समासों से अलंकृत और ३. दीर्घसमासयुक्त । आनन्दवर्धनाचार्य ने 'असमासा' से वैदर्भी, 'समासेन मध्यमेन च भूषिता' से पांचाली और 'दीर्घ• समासा' से गोडी रीति का निरूपण किया है। इनके अनुसार संघटना माधुर्यादि गुणों का आश्रय करती हुई रसों को अभिव्यक्त करती है। राजशेखर ने उक्त तीन रतियों के अतिरिक्त एक चोथा 'मागधीरीति' का
१. नवोऽर्थो जातिरग्राम्या श्लेषो क्लिष्टः स्फुटो रसः । . . विकटाक्षरबन्धश्च कृत्स्नमेकत्र दुर्लभम् ॥-वही. २.. तासां पूर्वा ग्राह्या । गुणसाकल्यात् । न पुनरितरे स्तोकगुणत्वात् ।
-काव्यालंकार, १. २. १४-१५. ३. काव्यालंकार, २, ४-६. ४. वैदर्भीपांचाल्यो प्रेयसिकरुणे भयानकाद्भुतयोः ।
लाटीयागौडीये रौद्रे कुर्याद् यथौचित्यम् ॥ -वही, १५. २०... ५. असमासा, समासेन मध्यमेन च भूषिता। . तथा दीर्घसमासेति त्रिधा संघटनोदिता ।।-ध्वन्यालोक, ३. ५. .. ६. गुणानाश्रित्य तिष्ठन्ति, माधुर्यादीन् व्यक्ति सा।
रसान् तन्नियमे हेतुरौचित्यं वक्तृवाच्ययोः ।।--वही ३. ६.