Book Title: Apbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Author(s): Premchand Jain
Publisher: Sohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 329
________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : ३१५ .. १६. विद्याधरी ने करकंडु से विवाह किया और वियुक्त रानी से मिलाया। १७. शीलगुप्त नामक मुनिराज का शुभागमन, करकंडु के उनसे तीन प्रश्नों का समाधान । १८. करकंडु का वैराग्य, केवलज्ञान और मोक्षप्राप्ति । उपर्युक्त अपभ्रंश कथाकाव्यों की कथानक-रूढ़ियों को देखने से इतना अनुमान अवश्य हो जाता है कि यह एक परिपाटी ही थी जिसका पालन कवि के जाने अथवा अनजाने ही होता रहा। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि हिन्दी प्रेमाख्यानकों की कथानक-रूढ़ियों ( जिनका विवरण प्रबन्ध के तृतीय अध्याय में किया गया है ) और अपभ्रंश काव्यों की रूढ़ियों में नायक का योगी होना, किसी चमत्कारी घटना का सहायक होना, सिंहल द्वीप की यात्रा और वहाँ की राजकुमारी से विवाह, प्राकृतिक दश्य-वर्णन, रानी को दोहद होना आदि कथानक-रूढ़ियाँ सामान्य रूप से दोनों में पाई जाती हैं। अनेक कथानक-रूढ़ियाँ संस्कृत साहित्य से ज्यों-की-त्यों अपभ्रंश और हिन्दी में आ गईं। अनेक तत्कालीन लोक. मानस की उपज हैं। . दोहद ... प्रो० ब्लूमफील्ड ने दोहद 'मोटिफ' को निम्न छः भागों में विभक्त किया है : . . . १. दोहद को अपूर्ति गर्भस्थ पुत्र को विकृत करती है अथवा उसके किसी अंग विशेष को आघात पहुँचाती है अथवा प्रजनन में कष्ट पैदा होता है। २. दोहद पति को शीघ्र ही वीरता के कार्य, उच्चतम ज्ञान, बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य करने की प्रेरणा करता है । ३. दोहद दैवी कर्मों का रूप धारण करता है अथवा दैवी इच्छा का रूप लेता है। ४. दोहद घटना को आलंकारिक या रोचक बनाने के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है, जो कहानी की मुख्य घटनाओं को प्रभावित नहीं करता।

Loading...

Page Navigation
1 ... 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382