Book Title: Apbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Author(s): Premchand Jain
Publisher: Sohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti

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Page 333
________________ हिन्दी प्रेमाख्यानको, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : ३१९ एक मास मारग चले, सह्यो सीत अरु घाम । • सरवर सोहनु पैषि कै, भयौ महिं विश्राम ॥ २३४ ॥ -रसरतन, पृ० १०६. वस्तुवर्णन, मोटिफ, निजधर तत्त्व आदि के तुलनात्मक अध्ययन के बाद हम मंगलाचरण, सज्जन-दुर्जनप्रशंसा-निन्दा आदि का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे। मंगलाचरण __मंगलाचरण समस्त भारतीय ग्रन्थों में मिलता है । संस्कृत आचार्यों ने तीन प्रकार से मंगलाचरण करने का विधान बताया है। ग्रन्थ के आदि, मध्य और अन्त में मंगलाचरण करने का निर्देश किया गया है। इसका उद्देश्य यह है कि कार्य का प्रारम्भ, उत्थान और अन्त निर्विघ्न हो सके। यह एक आस्था-विश्वास और संस्कृति की देन है । अपभ्रंश काव्य हों अथवा हिन्दी प्रेमाख्यानक सभी में कवियों ने अपने-अपने इष्टदेवों का स्मरण किया है। कहीं-कहीं वाग्देवी सरस्वती के स्मरण से ही काव्य का आरम्भ किया गया है-जैसे णायकुमारचरिउ । नयनंदी ने सकलविधिनिधान काव्य में सरस्वती की स्तुति इस प्रकार की है : छइंसण छच्चरण छंदालंकार फुरिय पक्खउडा। णवरस कुसुमासत्ता, भिगिव्य गिरा जए जयउ ॥१॥ विलसिय सविलास पया वाएसी परमहंस तल्लीण। .. मुणिगण हर पमुह मुहारविंद ठिय जयउहं सिव्व ॥२॥ रसरतनकार ने सरस्वती देवी को विभिन्न विशेषणों से युक्त स्मरण किया है : जा गंगा तारंगीवानी। साम्या पातायों ब्रह्मानी। जा ब्रह्मा ईसो गोविंदं। जा सूरो देवानं इंदं ॥७॥ जा बानी वोगेसं ईसं। जावानी आदेषं दीसं। जा वीना वानोदा दंडी। सा वानी पादोयं चंडी ॥८॥ सुमृत वेद अरु व्याकरन सेव सो आहि। ब्रह्म सुता नाराइनी देत बुद्धि बल ताहि ॥१०॥ -आदि खण्ड, पृ० ४-५.

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