Book Title: Apbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Author(s): Premchand Jain
Publisher: Sohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti

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Page 334
________________ ३२० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक अपभ्रंश-स्तुति में सरस्वती को षड्दर्शन, छंदालंकार, रस आदि से युक्त बताया गया है। उसी प्रकार स्मृति-वेद-व्याकरण आदि सरस्वती की सेवा करने से मिलते हैं, यह बताया गया है । पूर्ववर्ती कवियों का स्मरण — अपभ्रंश काव्यों के रचनाकारों में अपने पूर्ववर्ती कवियों को स्मरण करने को भी परम्परा थी। सकलविधिनिधान काव्य के रचयिता ने अन्य कवियों का स्मरण इस प्रकार किया है : मणु जण्ण वक्कु वम्मीउ वासु, वररुड वामणु कवि कालियासु। .. कोहल वाणु मऊरु सूरु, जिणसेण जिणागम कमल सुरु।.. वारायणवरणाउ विवियददु, सिरि हरिसु राय सेहरु गुणदटु । जसइंधु जए जयराय णाभु, जय देउ जणमणाणंद कामु।. . पालित्तउ पाणिनि पवरसेणु, पायंजलि पिंगलु वीरसेणु। सिरि सिंहणंदि गुणसिंह मदु, गुणभटटु गुणिल्लु समंस भदु । अकलंकु विखम वाईय विहंडि, कामददु रुददु गोविंदु दंडि। भम्मुई भारहि भरहुवि महंतु, चहुमुह सयंमु कह पुप्फयंतु । घत्ता-सिरि चंदु पहांचंदु वि विवुह, गुण गण गदि मणोहरु। कइ सिरि कुमार सरसइ कुमरु, कित्ति विलासिणि सेहरु ॥ १.५. . इसी प्रकार मुनि कनकामर ने करकंडुचरिउ में सिद्धसेन, समंतभद्र, अकलंकदेव , जयदेव, स्वयंभू और पुष्पदन्त का उल्लेख किया है : तो सिद्धसेण सुसमंतभद्द अकलंकदेव सुअजलसमुद्द। जयएव सयंभु विसालचित्तु वाएसरिघरु सिरिपुप्फयंतु ॥ -१. २. ८-९. यह परम्परा अथवा रूढ़ि हिन्दी-प्रेमाख्यानकों में ज्यों-की-त्यों चली आई। पुहकर ने निम्नलिखित कवियों का उल्लेख किया है : प्रथम सेष अरु व्यासुदेव सुषदेवहं पायौ । बालमीक श्रीहर्ष कालिदासहं गुन गायौ। माघ-माघ दिन जेमि वान जयदेव सुदंडिय। भानदत्त उदयेन चंद वरदाइक चंडिय॥

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