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३३० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
कहते हैं।'
उक्त विषय के विस्तार में न जाकर यहाँ हम कतिपय अपभ्रंश कथाकाव्यों में प्रयुक्त छन्दों के अध्ययन के बाद हिन्दी प्रेमाख्यानकों में वर्णित छन्दों पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार करेंगे। अपभ्रंश रचना सुदंसणचरिउ में कवि नयनंदी ने वाणिक और मात्रिक दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है। इसमें प्रयुक्त छन्दों की तालिका इस प्रकार है :
पादाकुलक, रमणी, मत्तमातंग, कामबाण, दुवई भयण विलासा, भुजंगप्रयात, प्रमाणिका, तोडसाउ, मंदाक्रान्ता, शार्दूलविक्रीडित, मालिनो, दोधय, समानिका, भयण, त्रिभंगिका ( मंजरी, खंडिय और गाथा का मिश्रण ), आनंद, द्विभंगिमा ( दुवई और गाहा का मिश्रण ), आरणाल, तोमर, मंदयारुत्ति, अमरपुरसुन्दरी, मदनावतार, मागहणकुडिया, शालभंजिका, विलासिनी, उविंदवज्जा, इंदवज्जा अथवा अखीणइ, उवजाइ ( उपजाति ), वसंतचच्चर, वसंत्थ, उध्वसी, सारीय, चंडवाल, भ्रमरपद, आवली, चन्द्रलेखा, वस्तु, णिसेणी, लताकुसुम, रचिना, कुवलयमालिनी, मणिशेखर, दोहा, गाथा, पद्धडिया, उण्डिया. मोत्तियदाम, तोणउ, पंच-चामर, सग्गिणी, मंदारदाम, माणिणी, पद्धडिया ( रयणमाल, चित्तलेह, चंदलेह, पारंदिया, रयडा इत्यादि ) ।
नयनन्दोकृत सकलविधनिधान काव्य में सुदंसणचरिउ में प्रयुक्त छन्दों के अतिरिक्त ये छन्द प्रयुक्त हुए हैं : __ श्रेणिका, उपश्रेणिका, विषमशीर्षक, हेममणिमाल, रासाकुलक, मंदरतार, खडिका, मंजरी, तुरंगगति ( मदन ), मंदतारावली ( कुसुमकुसुमावलि ), सिंधुरगति, चारुपदपंक्ति, मनोरथ, कुसुममंजरी, विश्लोक, मयणमंजरी, कुसुमघर, भुजंगविलास. हेला, उवविछिया, रासावलय, कामललिया, सुन्दरमणिभूषण, हंसलील, रक्ता, हंसिणी, जामिणो, मंदरावली, जयंतिया, मंदोद्धता, कामकोड़ा, णागकण्णा, अणंगभूसण, गउंदलील, गुणभूषण, रुचिरंग, स्त्री, जगन्सार, संगीतकगान्धर्व, बाल
१. पिंगल नागमुनि, पिंगलच्छन्दःसूत्रम्, २.५.