Book Title: Apbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Author(s): Premchand Jain
Publisher: Sohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti

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Page 342
________________ ३२८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिदी प्रेमाख्यानक विषय-विवेचन की दष्टि से ग्रन्थ या रचना को एकाधिक भागों में विभवत करना अनिवार्य तत्त्व है। इनको नामकरण की दृष्टि से सर्ग, अध्याय, परिच्छेद, खंड, लम्बक और सन्धि आदि रूपों में देखा जा सकता है। अपभ्रंश कथाकाव्यों में प्रायः 'सन्धि' होती थी और उनमें कहीं-कहीं परिच्छेद भी होते थे। इसकी सूचना प्रत्येक संधि के प्रत्येक परिच्छेद की समाप्ति पर दे दी जाती थी । उदाहरणार्थ : इह णायकुमारचारचरिए णण्णणामंकिए महाकविपुफ्फयंतविरइए महाकन्वे बालवीरलंभो णाम चउत्थो परिच्छेउ समत्तो । संधि ॥ ४॥ .. हिन्दी में कहीं खंड, कहीं अध्याय और कहीं परिच्छेदादि द्वारा विषयविभक्त करके विवेचन की परिपाटी रही है। पदमावत, रसरतन आदि में 'खंड' नामकरण किया गया है, जैस-अप्सरा खंड, युद्ध खंड, सिंहल . यात्रा-वर्णन खंड आदि । छंद . अपभ्रंश एवं हिन्दी प्रेमाख्यानकों को छन्द-योजना पर विचार करने के पूर्व 'छन्द' शब्द के अर्थ से परिचित होना आवश्यक है। 'छन्द' शब्द का कई अर्थों में प्रयोग किया जाता रहा है। श्रीमद्भगवद्गीता में वेदों को 'छन्दस' कहा गया है : ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥ १५.१. अमरकोश में 'छन्द' शब्द का अर्थ अभिप्राय लिखा गया है'अभिप्रायश्छन्द आशयः । अन्यत्र अमरकोशकार ने छन्द का अर्थ 'वश'-'अभिप्रायवशौ छन्दाब्दी जीमूतवत्सरा' किया है । गायत्री प्रमुख छन्द है-'गायत्री प्रमुखं छन्दो' । पद्य द्वारा व्यक्त अभिलाषा छन्द है'छन्दः पद्येऽभिलाषे च । हिन्दी शब्दसागर के अनुसार 'छंद' संज्ञा १. अमरकोश, तृतीय काण्ड, संकीर्णवर्ग, श्लोक २०. २. वही, नानार्थवर्ग, श्लोक ८८. ३. वही, द्वितीय कांड, ब्रह्मवर्ग, श्लोक २२. ४. वही, तृतीय कांड, नानार्थवर्ग, श्लोक २३२.

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