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हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : २९१
गायंतउ भमरावलिरवेण धावंतउ पवणाहयजलेण । ण सुयणु सुहावउ णयणइछु जलभरिउ सरोवरु तेहिं दिछु ।
-करकंडुचरिउ, ४. ७. ३-८. परवर्ती हिन्दी प्रेमाख्यानकों में नगर-वर्णन के अन्तर्गत सरोवरों का वर्णन अपने पूर्ववर्ती अपभ्रंश काव्यों के समान है । छिताईवार्ता में सरोवर का वर्णन इस प्रकार किया गया है :
सोहैं कमल कमोदिनि पान । भंवर बास रस भूहि न्यान ॥ निमसहि हंस हंसिनी संग । भरे. अनंद कुरंग कुलंग ॥ कोलति चकई चक्क चकोर । बन के जीव गुंजरहिं मोर ॥ हूँकि पंखि मटामरे घनै । जल ककरी आरि अनगनै॥ सारिस बग्ग हंस उनहारि । निमसहि पंखि सरोवर पारि ॥ पुरइनि कमल रहे जल छाइ । बहु फुलवारि रही महकाइ ॥
-छिताईवार्ता, पृ० ६३. हिन्दी प्रेमाख्यानकों में वस्तुवर्णन के अन्तर्गत प्रबन्ध के तृतीय अध्याय में सरोवरों का विवरण दिया गया है । वहीं यह स्पष्ट कर दिया : है कि ये अपने पूर्ववर्ती वर्णन परिपाटी से कितने अधिक प्रभावित हैं।
सरोवर-वर्णन को प्रणाली में कुछ रूढ़ियों का अन्त तक पालन किया जाता रहा। जैसे कुछ सरोवरों के वर्णन में जलचरों के नाम हो गिना दिए जाते थे। वर्णरत्नाकर और चन्दायन आदि के सरोवर-वर्णनों में अद्भुत साम्य है। वर्णरत्नाकर में सरोवर-वर्णन इस प्रकार है : - 'शरतक चाँद अइ(स)न निर्म ...."सरोवर देषु। ...कमल, कोकनद, कल्हार, कुवलय, कुमुदते उपशोभित..."सौर, मिलिन्धि, सफरी प्रभृति अनेक ये मत्स्य तें वलवलायमान". " हंस, कलहंस, सारस, सरालि, सिन्धु, कंकारी, कराल, कोयष्टि, कारण्डव, कुकुल, खएर, आंजन, मोरापालि, वक, पुण्डेरि, चक्रवाक प्रभृति अनेक जलचटक ते सुशोभन"...।' __ उपर्युक्त संदर्भ में 'चन्दायन' में सरोवर-वर्णन में आये जलचर जन्तुओं के नाम देखिए :
१. वर्णरत्नाकर, संपा०-सुनीतिकुमार चटर्जी, पृ० ३९--४०.