Book Title: Apbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Author(s): Premchand Jain
Publisher: Sohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 260
________________ • २४६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक उपदेशों के प्रभाव से भवदत्त को वैराग्य हो गया। अब भवदेव ने राज्य संभाल लिया। १२ वर्ष पश्चात् एक मुनिसंघ उस नगर में आया। भवदेव का विवाह हो रहा था तभी मुनि भवदत्त ( उसके बड़े भाई ) उसके दरवाजे पर पहुँचे । भवदेव बीच मण्डप से भवदत्त की खबर सुनकर उठ आया । भवदेव ने मुनि को आहार दिया। तदनन्तर. नगरवासियों सहित मुनि को छोड़ने दूर तक आया। सभी लौट गए परन्तु भवदेव ने सोचा कि भवदत्त मुनि लौटने को कहें तब वह लौटे । परन्तु मुनिसंघ में पहँचने पर उसने अनेच्छा होते हुए भी आचार्य से दीक्षा ले ली । परन्तु भवदेव अपनी विवाहिता के ध्यान में रहता और घर लौटने का अवसर खोजता रहता। किसी प्रकार बारह वर्ष बीतने पर मुनिसंघ पुनः वर्द्धमान ग्राम के समीप ठहरा । भवदेव अपने मन में पत्नी की इच्छा से ग्राम में आता है। मार्ग में जिनचैत्यालय में नागवसू से उसको भेंट हो गई। नागवसू व्रतादि के कारण अत्यधिक कृश हो गई थी। अतः भवदेव उसे नहीं पहचान सका। भवदेव ने उसी से अपने कूटम्ब के विषय में पूछा । नागवसू ने अपना परिचय दिया और भवदेव को व्रतभंग न करने का उपदेश दिया। भवदेव ने पूनः प्रायश्चित्त के साथ तप किया और दोनों भाई मरकर तीसरे स्वर्ग में देव हए। तदनन्तर भवदत्त स्वर्ग से अपनी आयु पूर्ण करके पुंडरिकिणी नगरी के राजा वज्रदंत की रानी यशोधना का पुत्र हुआ। अब इसका नाम सागरचन्द था। पूर्वविदेह में वोतशोक नगरी के राजा महापद्म की रानी वनमाला के गर्भ से भवदेव ने जन्म लिया। इसका नाम शिवकुमार रखा गया। अवस्था प्राप्त होते ही युवराज पद पर आसीन हुआ और कई राजकुमारियों से विवाह किया। सागरचन्द की नगरी में सुबंधुतिलक मुनि ने सागरचन्द को उसके पूर्व जन्म के दोनों भाइयों की कथा सुनाई। अतः वह दीक्षित हो गया। शिबकुमार को भी पूर्वभव की कथा का स्मरण हो आया। परन्तु उनके माता-पिता ने दीक्षा की अनुमति नहीं दी । फिर भी वे मन्त्री-पुत्र के हाथों शुद्ध आहार ग्रहण करते थे। अन्त में सन्यासपूर्वक मरण हुआ। उसी तप के प्रभाव से पहले भवदेव, फिर स्वर्ग में देव, फिर शिवकुमार और इसके बाद यह विद्युन्मालो नाम का देव हुआ है। अब विद्युन्मालो देव मनुष्यभव में जन्म लेकर विद्युत्प्रभ नामक चोर के साथ दीक्षा लेगा। श्रेणिक ने विद्युन्माली की चार देवियों

Loading...

Page Navigation
1 ... 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382