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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ९१ प्रेमाख्यानकों में संकेतित प्रेमाख्यान • उक्त प्रेमाख्यानक काव्यों में से कतिपय ऐसे भी आख्यानक काव्य हैं जिनमें कथा-परम्परा का उल्लेख किया गया है। जायसी ने अपनी रचना पद्मावती में कुछ कथाओं का उल्लेख किया है :
विक्रम धंसा प्रेम के वारा । सपनावति गएउ पातारा ॥ मधु पाछ मुगधावति लागी। गगनपूर होइगा वैरागी॥ राजकुंवर कंचनपुर गएऊ । मिरगावति कहं जोगी भयऊ॥ साध कुंवर खंडावत जोगू। मधुमालति कर कोन्ह वियोगू॥
प्रेमावति कहँ सुरसर साधा। उषा लगि अनिरुध वर बाँधा।' जायसी की उक्त सूची से यह तो निश्चितप्राय है कि उनके ग्रन्थरचनाकाल म ( १ ) स्वप्नावती, (२) मुग्धावती, ( ३ ) मृगावती, ( ४ ) मधुमालती, ( ५ ) प्रेमावती और ( ६ ) उषा-अनिरुद्ध की कथाएँ लिखी जा चुकी थीं।
१७वीं शताब्दी के कवि बनारसीदास ने अपने आत्मचरित में इस आशय की सूचना दी है :
तव घर में बैठे रहें जाहिं न हाट बाजार। मधुमालती मिरगावती पोथी दोइ उदार ॥ ते बांचहि रजनी समे आवहि नर दस बीस ।
गावै अरु बातें करहिं नित उठि देहि असीस॥ : इस प्रकार इन्होंने दो पोथियों का उल्लेख किया है। ___ उसमान ने अपने काव्य चित्रावली में मिरगावती, पदमावती और मधुमालतो इन तीन का वर्णन किया है :
मृगावती मुख रूप बसेरा । राजकुंवर भयो प्रेम अहेरा ॥ सिंहल पदुमावति मोरूपा। प्रेम कियो है चितउर भूपा। मधुमालति होइ रूप देखावा । प्रम मनोहर होइ तहं आवा ॥3
इसके बाद रसरतनकार ने भी कतिपय प्रेमकथाओं का उल्लेख किया है :
१. पं० रामचन्द्र शुक्ल, जायसी-ग्रन्थावली, पृ० १००. २. बनारसीदास, अर्ध-कथानक, सं०-नाथूराम प्रेमो, हि० ग्र० र० बम्बई,
ई० १९५७. ३. उसमानकृत चित्रावली, सं०-जगमोहन वर्मा, पृ० १३.
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