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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ८३ का बखान कर अपनी लघुता का प्रदर्शन करता है। इसके बाद कथा चलती है, जो इस प्रकार है :
गोमती नदी के तट पर चन्द्रपुर नामक एक रमणीक नगर था। वहाँ का राजा चन्द्रभानु था। नगर के सभी मंदिर मुक्ता-माणिकों से जड़े थे। वहाँ को स्त्रियाँ स्वर्ग को अप्सराओं के सामान थीं। राजा की अतीव सुन्दरो ७०० रानियाँ थीं। महिषी का नाम रूपरेखा था। उसके गर्भ से एक सून्दर कन्या उत्पन्न हई । ज्योतिषियों ने उसका नाम चित्ररेखा रखा और उसे चन्द्रमा के समान, पर निष्कलंक बताया। रूप, गुण और शोल में उसके समान अन्य कोई भी नहीं होगा, यह कन्नौज की रानी होगी-आदि अनेक भविष्यवाणियाँ की गईं। धीरे-धीरे चाँद की कला के समान वह बढ़ती गई । दसवें वर्ष के आते-आते उसका बदन पूर्णिमा के चन्द्रमा जैसा प्रकाशित हुआ। उसके केश भ्रमर, सर्प और शेषनाग जैसे काले हो गये। उस गौरांगी की ज्योति शरद् की पूर्णिमा जैसी थी। नेत्र खंजन के समान थे। भौंहें धनुष और बरौनी बाणों के समान तथा पलकें तलवार के समान हो गई थी। ___ जब वह सयानी हुई तो राजा चन्द्रभानु ने ब्राह्मणों को वर की खोज में भेजा। ब्राह्मणों ने सैकड़ों स्थानों पर वर को देखा परन्तु उपयुक्त वर कहीं नहीं मिला। अन्त में वे सिंहल के राजा सिंघनदेव के यहाँ आये । • सिंघनदेव के एक लड़का था जोकि कुबड़ा था। ब्राह्मण परेशान हो चुके
थे अतः उन लोगों ने अच्छा राजपाट देखकर वहीं 'वरच्छा' दे दिया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि विवाह के समय दूसरा वर दिखा
देंगे और विवाह होने के बाद देखा जायेगा। पुरोहितों ने स्वस्तिपाठ के • साब कूबड़े को टोका लगा दिया। लग्न निर्धारित किया गया तो ज्योतिषियों ने राह और चन्द्रमा का योग बताया और कहा कि यह विवाह नहीं होगा।
इधर कन्नौज नगर के राजा कल्याणसिंह थे। उनके पास अपार सेना, धन-सम्पत्ति थो। परन्तु पुत्र के अभाव से अत्यधिक दुःखी थे । उन्होंने घोर तप किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । पण्डित और सामुद्रिक ज्योतिषी आदि पधारे । उन्होंने कुमार को बत्तीस लक्षणों से युक्त, भाग्यवान् और सब प्रकार से उत्तम बतलाया । कुमार का