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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ७१
उसका रस्सा खरीदा। उसमें बीच-बीच में गांठ लगाकर ऊपर एक अंकुरी बाँध ली। रात में महल को ओर चला। भादों की अँधेरी रात में उसे कुछ नहीं दिखाई पड़ रहा था। बिजली चमकी तो चाँद का दरवाजा उसे दिखा। चाँद ने लोरक को देखा। वह प्रसन्न हुई। लोरक ऊपर रस्सा फेंकता, चाँद उसे मजाक करने को बार-बार नीचे डाल देती। बाद में लोरक ऊपर पहुंचा। उसके साथ रातभर केलि की। प्रातः चाँद ने देर हो जाने के कारण उसे चारपाई के नीचे छिपा दिया। शाम को अंधेरा होते ही उसे पुनः मिलने का वायदा करके विदा किया। लोरक घर पहुंचा तो मैना का सन्देह दूर करने को उसने कहा-राजा का रास देखने में ही रात बीत गई। ___इधर महर और महरि को ज्ञात हो गया कि रात्रि में महल में कोई पुरुष आया था। भृत्यों द्वारा सारे नगर में बात फैल गई। मैना को भी पता लगा। वह लोरक से क्रुद्ध हो गई। पण्डित ने चाँद को बताया कि वह असाढ़ी के पर्व पर होम-जापकर सोमनाथ की पूजा करे तो मनोकामना पूरी होगी। उसने वैसा ही किया और लोरक को पतिरूप में प्राप्त करने की मनौती मानी। मैना भी दर्शन करने गई । मैना की उदासी का कारण चाँद ने हंसकर पूछा । इस पर दोनों में मारपीट शुरू हो गई। लोरक ने आकर बीच-बचाव किया। मैना ने घर आकर चाँद की शिकायत महरि के पास भेजी जिससे वह लज्जित हुई। .: चाँद की सब बात खुल जाने के कारण वह मरने की सोच रही - थी। उसने विरस्पत द्वारा लोरक के पास संदेश भेजा कि वह रात में उसे
भगाकर ले जाय, नहीं तो वह सुबह कटार मारकर मर जायेगी। लोरक समझाने से भगाने को तैयार हो गया। रात्रि में दोनों आभरण, मानिक, मोती के साथ भागे। लोरक और चाँद ने अपने दोनों हाथों में अस्त्र लिये । दोनों काले कपड़े पहनकर चल दिये । गोवर से दस मील दूर लोरक का भाई कँवरू रहता था अतः वे वहाँ से कतराकर चलने लगे । लोरक के भाई ने उसे देख लिया और उसके पीछे भागा। लेकिन चाँद को पीछेपोछे आते देख वह ठिठक गया । उसने उन दोनों की भर्त्सना की।
वे तेजी से भागते हए रात होने पर गंगा के किनारे पेड़ के नीचे सो गये। सुबह लोरक छिपा रहा। चाँद किनारे पर खड़ी हो नौका को प्रतीक्षा करने लगी। नाविक आया और उसे नौका में बैठाकर ले चला।