________________
हिन्दी प्रेमाख्यानों का ऐतिहासिक विकास : ६९ झरोखे में खड़ी चांद पर पड़ी तो वह देखते ही मूच्छित हो गया। लोगों के पूछने पर उसने चाँद से अपनी आसक्ति की बात बताई । परन्तु सहदेवराय के भय से वह नगर छोड़कर चला गया। वाजिर एक माह इधर-उधर घूमने के बाद एक नगर में पहुंचा। वहीं वह चाँद के विरह के गीत गा रहा था, जिन्हें सुनकर वहाँ के राजा रूपचन्द ने उसे बुलाया । रूपचन्द के पूछने पर वाजिर ने अपना स्थान उज्जैन बताया। उसने चाँद के दर्शन और उसके वियोग की बात भी राजा को बताई । राजा ने जिज्ञासावश चांद के विषय में विस्तार से जानना चाहा । तब वाजिर ने चाँद की मांग, केश, ललाट, भौंह, नेत्र, नासिका आदि प्रत्येक अंग के सौन्दर्य का सविस्तार वर्णन किया ।
चाँद के रूपसौन्दर्य का वर्णन सुनकर रूपचन्द ने सेनापति को सेना तैयारकर गोवर नगर की ओर कूच कर देने को कहा | कवि ने सेना के हाथी-घोड़ों आदि का वर्णन करने के बाद लिखा है कि राजा को मार्ग में अपशकुन हुए, परन्तु वह गोवर नगर को घेरने तक आगे बढ़ता रहा । उसने जाकर नगर घेर लिया । रूपचन्द की सेना के आ जाने से नगर में खलबली मच गई। सहदेव ने अपने दूत भेजकर आक्रमण का कारण पुछवाया । दूतों ने आकर बताया कि वह चाँद से विवाह करना चाहता है । सहदेव ने अपने मन्त्रियों के परामर्श से युद्ध ठान दिया क्योंकि उसके पास भी अश्व, अश्वारोही, हाथी आदि कम नहीं थे । दूसरे दिन युद्धारम्भ हो गया । युद्ध की भयानकता देखकर भाट ने सहदेव को सलाह दी कि सहायता के लिए लोरक को बुला लीजिए क्योंकि रूपचन्द के योद्धा शक्तिशाली हैं । राजा की आज्ञा से भाट ही लोरक को लेने गया । लोरक के आते समय उसकी पत्नी मैना उसके सामने खड़ी हो गयी और युद्ध में जाने से रोकने लगी। उसे आश्वासन दे लोरक अजयी से युद्ध - कौशल की • शिक्षा ले महर के पास पहुंचा। महर ने उसे तीन पान के बीड़े दिये और कहा कि विजयी होने पर वह उसे तीन सुसज्जित घोड़े देगा ।
लोक ने अपनी सेना को लेकर युद्ध किया । युद्ध में उसकी विजय हुई । युद्ध की जीत पर महर ने लोरक को पान का बीड़ा दिया और हाथी पर बैठाकर उसका जुलूस निकाला। चाँद अपनी दासी विरस्पत के साथ धौरहर के ऊपर जुलूस देखने गई । वह लोरक को देखते ही विकल होकर मूच्छित हो गई। विरस्पत ने चाँद के मन की बात पूरी कर देने को कहा ।