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७८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक चन्द्रगिरि के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में वह रूपमनि से मिला। रूपमनि के पिता ने खूब स्वागत-सत्कार किया। रूपमनि को साथ लेकर वह चल पड़ा।
राजकुमार को आखेट का शौक था। एक बार एक बहेलिये ने उसे वन में एक सिंह के आने की सूचना दी। राजकुमार जंगल में जाकर सोते सिंह को जगाने लगा। सिंह ने जागकर राजकुमार को समाप्त कर दिया। मृगावती और रूपमनि सती हो गईं। नगरवासियों ने कनेराय को सिंहासन पर बैठाया। - पद्मावती अथवा पदमावत-पद्मावती हिन्दी-सूफी-साहित्य के प्रसिद्ध कवि मलिक मुहम्मद जायसी की रचना है। रचनाकाल के विषय में प्रायः मतभेद रहा है। यह सन् १५४० ई० की रचना है। हिन्दी के सफ़ीसाहित्य पर अबतक जितना भी काम हुआ है उसमें से अधिक भाग जायसी को ही मिला है। पद्मावती को 'सर्वप्रथम उल्लेखनीय चर्चा फ्रेंच लेखक गार्साद तासो ने अपनी पुस्तक इस्तार दल लितरेत्यूर एन्दूई ए ऐन्दुस्तानी के द्वितीय भाग में की थी। इसका पहला सुसम्पादित संस्करण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'जायसी ग्रन्थावली' के नाम से नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित कराया। अबतक पद्मावती की टीका-व्याख्याएं और सुसम्पादित संस्करण कई स्थानों से प्रकाशित हो चुके हैं। डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ने पदमावत को संजीवनी व्याख्यासहित सम्पादित किया है। ... सूफ़ी-साहित्य का महत्त्वपूर्ण प्रेमाख्यान जायसी की इस रचना को कहा जा सकता है। यही कारण है कि सन् १८८१ ई० से लेकर इसके अनेक संस्करण अबतक संपादित होकर प्रकाश में आये हैं : १. नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ से १८८१ ई० में प्रकाशित. २. सं०-५० रामजस मिश्र, चन्द्रसभा प्रेस, काशी, ई० १८८४. ३. बंगवासी फर्म द्वारा प्रकाशित, ई० १८९६.
१. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा 'जायसी-ग्रन्थावली' ना० प्र० सभा से प्रकाशित. २. पं० परशुराम चतुर्वेदी, हिन्दी साहित्यकोश, भाग २, पृ० २९१. ३. डा. वासुदेवशरण अग्रवाल, पदमावत, साहित्य सदन चिरगांव, झाँसी से
प्रकाशित.