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. ७२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
उससे अकेले होने का कारण पूछा। आधी नदी आने पर लोरक पानी में से निकला और नाविक को ढकेल स्वयं नौका को ले बढ़ा। इतने में बावन आ पहुंचा और केवट से सारी स्थिति समझकर नदी में कूद गया । बावन ने नदी पार करके उनका पीछा किया और दस कोस पर जाकर उन्हें पकड़ा। लोरक पर उसने तीन बाण चलाये जो बेकार गये । वह हार मानकर वापिस आ गया ।
लोक को रास्ते में विद्यादानी नामक एक ठग मिला। उसने दान के बहाने चाँद को माँगा । लोरक ने उसके हाथ-कान काटकर छोड़ दिया । विद्या ने राव करंका से इसकी शिकायत की। राव ने लोक को बुलवाकर उससे स्थिति जानी और लोरक का सम्मान किया । वहाँ लोरक एक ब्राह्मण के घर फूलों की शय्या पर सोया । रात्रि में सुगन्ध के कारण एक सांप आया और उसने चाँद को काट लिया । सात दिन तक लोक विलाप करता रहा तब एक गुनी ने मन्त्र से चाँद को जीवित कर दिया । वे अब हरदी की ओर चले । मार्ग में उसे युद्ध करके आगे का रास्ता मिला। मार्ग के एक वन में रात हो गई । वे वहीं पेड़ के नीचे सो गये। रात्रि में चाँद को पुनः सर्प ने काट लिया । लोरक उसे चिता पर रख ही रहा था कि गुनी ने आकर उसे जिन्दा कर दिया ।
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लोरक और चांद ने पुनः हरदी की ओर कूच किया । गारुड़ी कहता हुआ निकल गया कि पाटन देश मत जाना, जाना हो तो दाहिने रास्ते को अपनाना। उन्होंने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया । शाम तक वे सारंगपुर पहुँचे । वहाँ उसने वहाँ के राजा के साथ जुआ खेला और चाँद सहित सब कुछ हार गया। चाँद ने एक बार पुनः खेलने को कहा । महीपति इस बार हार गया । लोरक ने उसे मार डाला । मार्ग में फिर साँप
काटा | उसने जीवित होकर चार स्वप्न देखने की बात कही। उसका विवरण चाँद ने दिया । वे फिर चल पड़े। चार दिन चलने के बाद एक नगर में पहुँचे । चाँद को मन्दिर में बैठाकर लोरक नगर में खाने-पीने का सामान लाने चला गया । पूर्व स्वप्न के अनुसार टूटा योगी आया और उसने आकर सिंगी नाद किया । चाँद वेसुध होकर उसके पीछे चल पड़ी। लोक सामान लेकर आया तो चाँद को गायब देख विलाप करने लगा । किसी प्रकार टूटे योगी का पता लगा वहाँ पहुँचा । परन्तु योगी के आँख दिखाते ही भाग निकला। तभी उसे सिद्ध का वचन स्मरण हो आया ।