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हिन्दी प्रेमाख्यानों का ऐतिहासिक विकास : ५९
सूरसेन की सेना चली । सेना में हाथी-घोड़े आदि सभी अच्छी नस्ल के थे । इसका वर्णन कवि ने आलंकारिक भाषा में विस्तृत रूप से किया है। सूरसेन अपनी सेना के साथ विस्तृत मार्ग तय करके मानसरोवर के तट पर पहुंचे । वहाँ का दृश्य बड़ा मनोरम और सुहावना था । सूरसेन ने वहीं रात्रि विश्राम का निश्चय किया । उसी दिन अर्द्धरात्रि के बाद अप्सराएं वहीं जलक्रीड़ा करने आईं । सभी अप्सराएँ सुन्दर आभूषणों से युक्त थीं । चांदनी रात का सुहावना मौसम था । ये अप्सराएँ रंभा की सलाह से क्रीड़ा-कमलों से खिलवाड़ करती रहीं । मंदिर के वहाँ उन्होंने देखा कि एक सुन्दर युवक एक बहुमूल्य पलंग पर सोया हुआ है । सूरसेन के रूप को देखकर अप्सराओं को अपनी अभिशप्ता सखी कल्पलता की याद आई जो इन्द्र के शाप से पृथ्वी पर आ गई थी। उन्होंने सोचा कि यदि कल्पलता का विवाह इस सुन्दर युवक से हो जाय तो उसका अभिशाप वरदान में बदल जायेगा । इसी उद्देश्य से अप्सराओं ने पलंग उठाया और ब्रह्मकुण्ड की ओर ले चलीं । कल्पलता के पास पहुँचकर अप्सराओं ने उसको उस युवक से गंधर्व - रीति से विवाह करने पर राजी कर लिया । शीघ्र ही कल्पलता का श्रृंगार करके उससे युवक को जगवाकर आरती उतरवाई। सखियाँ उन दोनों को केलिक्रीड़ा करने के लिए छोड़कर हट गईं । सूरसेन ने इसे रंभा समझा ।' क्योंकि जो जिसकी आखों में बसता है उसे वही दिखाई पड़ता है । दोनों आलिंगन - पाश में बंध गये । इस स्थान पर दोनों की सुरति केलि का वर्णन कवि पुहकर ने कामशास्त्र. के आचार्य के रूप में ही किया है । सुरति के बीच में कल्पलता की 'चतुराई' से सूरसेन को सन्देह हुआ कि यह रंभा नहीं है । कुमार ने उसका परिचय पूछा । कल्पलता ने बताया कि वह इन्द्रसभा की एक अप्सरा है । एक नृत्य में बाधा के कारण नल ने उसे मर्त्यलोक में आने का शाप दे दिया । परन्तु उसने दया करके कहा कि तेरा पति एक नरेश होगा, मेरी कृपा से सुख-भोग में कमी नहीं होगी । बाद में कुमार के अनुरोध पर कल्पलता ने अप्सराओं का नृत्य दिखलाया । एक दिन सोये हुए कुमार के गले में रत्नजटित 'उरवसी' में रंभा का चित्र देखकर उसका भेद पूछा। कुमार ने बात छिपा ली। कुछ समय बाद कुमार को रंभा की याद सताने लगी । वह एक साधु-मण्डली के पास चम्पावती का मार्ग पूछने के लिए गया । मार्ग का पता चला कि वह विकट मार्ग है । परन्तु कुमार योगी का वेश बना,
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