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५२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
कार का चेहरा कुम्हलाया देख बादशाह ने कारण जानना चाहा। सभा समाप्त होने पर चित्रकार को बादशाह ने अलग महल में बुलाया। चित्रकार ने छिताई का चित्र जब बादशाह को दिखाया तो वे मच्छित हो गये। चेत आने पर उन्होंने चित्र अपनी हिन्दुनी स्त्री हयवतो को दिखाया। उसने मुग्ध होकर किसी भी प्रकार छिताई को सजीव देखने की इच्छा प्रकट की।
अलाउद्दोन स्वयं विशाल सैन्यदल के साथ मार्ग में मन्दिरों को ध्वंस करके मस्जिदों का निर्माण करता हआ देवगिरि पहँचा। वहाँ उसने घेरा डाल दिया। सोरसी के नेतृत्व में देवगिरि को सेना ने युद्ध किया। दोनों ओर की क्षति हुई।
अलाउद्दीन छ: माह तक घेरा डाले रहा। रामदेव ने सोंरसी से छिताई को लेकर अन्यत्र चले जाने का प्रस्ताव किया। वह इस बात पर तैयार नहीं हुआ। किन्तु वह द्वारसमुद्र से सैन्य सहायता लेने चला गया । जाते समय छिताई को अपना अंगरखा ( वस्त्र ), कण्ठमाला तथा दक्षिणी जमघर चिह्नस्वरूप दे गया। सोरसी के जाते ही छिताई तपस्विनी का सा जीवन बिताने लगी।
इधर अलाउद्दीन को संदेह हुआ कि दुर्ग से सोरसी छिताई को लेकर तो नहीं निकल गया। उसने राघव चेतन को बुलवाकर अपना संदेश व्यक्त किया। उसने पद्मिनी को न पा सकने की भी बात दुहरायो ! यदि उसे निश्चित पता लग जाये कि छिताई कहाँ है तो वह उसो स्थान पर आक्रमण करेगा।
राघव चेतन दो दूतियों के साथ वसीठ के रूप में दुर्ग के अन्दर पहुंच गया। बादशाह भी दुर्ग को अन्दर से देखने की इच्छा से राघव चेतन के अनुचर के रूप में उसके साथ गया। दूतियाँ रनिवास की ओर चली गईं। राघव चेतन दरबार की ओर चला गया और बादशाह नगर की ओर चला गया । बादशाह देवगिरि के सुन्दर रामसरोवर के किनारे पहुंचा। वह अपने साथ गुलेल तथा गोलियाँ लेता आया था उनसे पक्षियों का शिकार करने लगा। छिताई भी अपनी सखी मैनरेखा के साथ वहाँ पहुँची। उसे इस व्यक्ति पर संदेह हुआ अतः अपनी सखी को उसका पता लगाने के लिए छोड़कर चली गई। ___मैनरेखा बादशाह के पास पहुंची और उसे गोलियाँ थमाने लगी। अब गोलियाँ समाप्त होते ही मैनरेखा ने बादशाह से कहा कि वह उसे