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- हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ५३ पहचान गई है, वह रामदेव के पास उसे ले जायेगी। बादशाह के सेना लेकर वापिस चले जाने के आश्वासन से वह मान गई। उससे लिखित प्रतिज्ञापत्र भी ले लिया। बादशाह अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार सेना लेकर वापिस जा ही रहा था कि मन्त्री की जिद्द से काम बिगड़ गया। बादशाह पुनः रुक गया । फिर भीषण युद्ध हुआ। मन्त्री पीपा बहुत ही लज्जित हुआ।
दोनों दूतियाँ छिताई को पथभ्रष्ट करने चली थीं। परन्तु छिताई को जब संदेह हुआ तो दुतियों ने बहाना कर दिया कि वे उसकी परीक्षा ले रही थीं। सुबह नित्य की भाँति छिताई शिवमंदिर गई। दूतियों ने सब आकर बादशाह को बता दिया। दूसरे दिन बादशाह इन्हीं दूतियों और सैनिकों के साथ सुबह ही शिवमंदिर पर पहुँच गया । छिताई मंदिर आई, उसकी ४० सखियों ने युद्ध किया. और मारी गई । छिताई को बादशाह ने पकड़ लिया और अपने पीछे घोड़े पर बिठा लिया। छिताई ने उसे पिता के समान कहा तो वह लज्जित हो गया, परन्तु उसे दिल्ली ले गया। छिताई वहाँ बहुत समझाने पर भी दुःखी रहने लगो। बादशाह ने उसे राघव चेतन की संरक्षता में हर सूविधा के साथ रख दिया।
सोंरसो के द्वारसमुद्र से वापिस होने पर पूरी घटना ज्ञात हुई। वह योगी हो गया। वह दिल्ली जमना के किनारे के विध्यवन उद्यान में पहुंचा
और अपनी वीणा बजाई। वहाँ के सभी जीवजंतु उसके पास आ गये। उसने सभी आभषण उनको दे डाले । तदनन्तर वह नगर में गया।
छिताई के पास एक ऐसो वीणा थी जिसे सोंरसी हो बजा सकता था। उसने वह वीणा दिल्ली के कलावंत के यहाँ यह कहकर रख दी थी कि जो भी इस वीणा को बजा देगा वह उसी की हो जायेगी। योगी सोरसी उस कलाकार के यहाँ पहुँचा और उस वीणा को निनादित किया । छिताई इस समाचार से.अत्यधिक प्रसन्न हई। योगी वहाँ से राघव चेतन के यहाँ गया और उससे अनुरोध किया कि वह बादशाह से मिलना चाहता है। बादशाह से मिलने पर उसने अपने को सिंहल का निवासी बताया और दिल्ली में लट जाने की कहानी बतायी। उसने बादशाह को साथ ले जाकर पुनः वीणा बजाई, सभी जीवजन्तु जुट गये। उसने बादशाह को अपने सभी आभूषण उन जन्तुओं के पास दिखाये और लुटेरा बता दिया।
बादशाह ने योगी के कौशल के प्रदर्शन का आयोजन किया। आयोजन में बादशाह के निकट छिताई थी। योगी के वेश में देखने और फिर