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३६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक विषय में श्री अगरचन्द नाहटा ने एक लेख में लिखा है : 'सदयवत्सकथा का सर्वाधिक प्रचार राजस्थान में रहा प्रतीत होता है। केवल हमारे संग्रह में हो इस कथा को ( राजस्थानी भाषा की ) १२ प्रतियाँ उपलब्ध हैं। बीकानेर की अनूप संस्कृत लाइब्रेरी में १२, सरस्वती भंडार उदयपुर में ५, कुंवर मोतीचन्द जी के संग्रह में ३, बृहद् ज्ञान भंडार में ३ प्राप्त हैं।
लखमसेन-पद्मावतीकथा-इस कथा के लेखक दामों ने इसे 'वीरकथा' कहा है और इसका रचनाकाल ज्येष्ठ वदो नवमी, दिन बुधवार सं० १५१६ लिखा है :
संवत् पनरह सोलोत्तरा/मझारि, जेष्ठ वदि नवमी बुधवार ।
सप्त तारिका नक्षत्र द्रढ जाणि, वीर कथा रस करूँ वखाण ॥४॥ ऐसा लगता है कि वीररसप्रधान रचना के उद्देश्य से दामो ने काव्य के प्रारम्भ में ही यह सूचना दे दी है। जिस काव्य में कुमारी कन्या ही १०१ राजाओं के वध करने वाले से विवाह करने की बात कहे, उसमें वीररस तो प्रधान होगा हो। फिर भी यह रचना प्रेमाख्यान है। रचना आकार-प्रकार में लघु है । प्रकाशित रूप में मात्र ३४ पृष्ठों की रचना है । कथा का सारांश इस प्रकार है :
प्रारम्भ में कवि शारदा माँ और विघ्नहरण गणेशजी की वन्दना करता है। स्वरचना-समय आदि लिखकर कथा प्रारम्भ करता है। एक सिद्धनाथ नाम का योगी था जो घर-घर, ग्राम-ग्राम् सर्वत्र विचरण करता चलता था। एकबार गढ़सामोर भी वह योगी आकाश मार्ग से पहुंचा। वहाँ का राजा हंसराज था। योगी ने उसकी मनमोहिनी कन्या पद्मावती को देखा और उस पर मोहित हो गया । राजकुमारी से उसने प्रश्न किया कि तुम विवाहिता हो या अविवाहिता । सुकुमारी ने उत्तर दिया कि जो व्यक्ति १०१ राजाओं का वध करेगा मैं उसी से शादी करूंगी। योगी इसके उपाय पर विचार करने लगा। वह तो सिद्ध था ही। उसने किसी एक कुएं से गढ़सामोर तक सुरंग बनाई। गढ़सामोर के राजा १. श्री अगरचन्द नाहटा, राजस्थान-भारती, अप्रैल, ई० १९५०. २. सं०--नर्मदेश्वर चतुर्वेदी, परिमल प्रकाशन, प्रयाग, ई० १९५९. ३. दामोचरित, वही, पृ० १.