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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ४३
को भाषा की कृत्रिमता उसमें नहीं मिलतो । दोहा, छप्पय, गाहा, पाघड़ी, मोतीदाम, मुडिल्ल आदि छन्दों का प्रयोग कृति में हुआ है। कृति में १४० छन्द हैं । कथा और काव्य की दष्टि से कृति का जितना महत्त्व है उससे अधिक भाषा की दष्टि से है। अपभ्रंश के चिन्हों से मुक्त उसे राजस्थानी व्रजभाषा कहा जा सकता है।'
मधमालतीवार्ता -चतुर्भुजदास के इस ग्रन्थ के रचना-संवत् के विषय में ठोक-ठीक नहीं कहा जा सकता। इसे १८३७ सं० का माना गया है। इसी कथा में कुछ संशोधन करके माधवशर्मा ने भी इसी नाम की रचना की थी। मधुमालतीवार्ता में विशेष द्रष्टव्य यह है कि इसमें जन्मान्तर को कथा का भी उल्लेख है, जो कि एक कथानक-रूढ़ि है। अवान्तर कथाओं के माध्यम से कथा का विस्तार किया गया है। इसमें पशु-पक्षियों की कहानी को भी स्थान मिला है। यह कथा पूर्णरूपेण भारतीय है, किन्तु एक बात अवश्य ऐसी है जो खटकती है। वह यह कि मालती जब शिक्षाग्रहण करने गुरु के पास बैठती है तो पर्दा लगाया जाता है । यह पर्दे की प्रथा तो मुगलों की देन है और फिर गुरु के सामने पर्दा लगाकर पढ़ने बैठना अटपटा लगता है। यह अवश्य ही विदेशी प्रभाव है। कवि ने अपनी रचना को कामप्रबन्ध कहा है ।
काम प्रबंध प्रकास फूनि मधमालती विलास ।
प्रदुमन की लीला इह कहत चतुर्भुज दास ॥ ६४७॥ अंतिम दोहे में रचना की विशेषता पर भी कवि ने प्रकाश डाला है। __राजा पढ़े सो राज गति मंत्री पढ़े ताहि बुद्धि ।
कामो काम बिलास रस ग्यानी ग्यान संसुद्ध ।। ६४८॥ कथा इस प्रकार है : आरम्भ में कवि गणेशजी की स्तुति करता है । लीलावतो. नामक एक सुन्दर देश था। वहाँ का राजा चन्द्रसेन बहत वैभव वाला था । उसका तारनसाह नाम का एक बुद्धिमान मन्त्री था। राजा को चार रानियाँ थीं। परन्तु मालती नामक मात्र एक कन्या सन्तान थी जो अत्यधिक सुन्दर थी। इसी प्रकार मन्त्री को भी एक पुत्र ही था जिसे वह मधु कहता था। जब मधु बड़ा हुआ तो वह मान
१. चतुर्भुजदासकृत मधुमालतोवार्ता, डा० माताप्रसाद द्वारा संपादित और काशी __ नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित, सं० २०२१.