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४२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
प्रस्ताव किया। माधव के अस्वीकार कर देने पर उसने राजा से कहकर (कि सारे नगर को स्त्रियाँ इसके पीछे-पीछे घूमती हैं, इसका आचरण ठीक नहीं है आदि ) माधव को देशनिकाला दिलवा दिया। माधव इधरउधर भटकता फिरा । वह वीणा वादन में प्रवीण था। कामाबती नगरी के राजा कामसेन को अपने गुणों से प्रभावितकर उनके दरबार में सम्मान पाता है। उनके यहाँ की वेश्या कामकन्दला से प्रेम करने पर वहाँ से भी निष्कासित होता है। उज्जैन पहुँचकर राजा विक्रम की सहायता से कामकन्दला को प्राप्त करता है और सुख के साथ भोग करता है।
'इन रचनाओं के अतिरिक्त श्री योगेन्द्रप्रताप सिंह ने कुछ अन्य रचनाओं की सूचना दी है। वे लिखते हैं : 'इनके अतिरिक्त .अवधी में रचित आलमकृत 'माधवानलभाषा' अधिक प्रसिद्ध हुई है । आलम के पश्चात् बोधा कवि ने भी समान नामक वेश्या को सम्बोधित करके खेतसिंह के मनोरंजनार्थ एक अन्य 'माधवानल-कामकन्दला' की रचना को थी। सन् १८१२ ई० में हरिनारायण कवि द्वारा भी ‘माधवानलकामकन्दला' के प्रणयन का उल्लेख मिलता है। इन समस्त रचनाओं में आलमकृत 'माधवानलभाषा' सर्वोत्तम कहो जा सकती है। इसका रचनाकाल सं० १६४० है'।
बुद्धिरासो-यह एक प्रेमकथा है। इसकी प्रति मेरे देखने में नहीं आई । अतः इसके विषय में अधिक नहीं लिखा जा सकता। इसके विषय में हिन्दी-साहित्यकोश में जैसा लिखा है वह इस प्रकार है : 'जल्ह की कृति बद्धिरासो का रचनाकाल अनिश्चित है। कृति की हस्तलिखित प्रति सन् १६४७ ई० की लिखी हुई मिलती है। 'बुद्धिरासो' एक प्रेमकथा है, जिसमें चम्पावती नगरी के राजकूमार और जलधितरंगिनी नामक सुन्दरी के प्रेम-वियोग और पुनर्मिलन की सरस कथा है। हिन्दी की मेनासन जैसी प्रेमकथाओं के समान ही कथा की रूपरेखा है । कृति के जो उद्धरण प्रकाशित हुए हैं उनके आधार पर कृति की भाषा पृथ्वीराजरासो जैसे ग्रन्थों में प्राप्त भाषा से बहुत भिन्न नहीं लगती। किन्तु पृथ्वीराजरासो १. हिन्दी-साहित्यकोश, भाग २, पृ० ४१७. २. वही, पृ० ३६६-६७.