________________
४६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
जान शंकर और सूर्यादि देवताओं को प्रार्थना को। मध ने अकेले ही रक्षा में समर्थ होने के सन्दर्भ में मलयंद सुत की कथा मालतो को सुनाई जिसने मन्त्री कन्या रूपरेखा के साथ वाटिका में विहार किया था। वहाँ अचानक सिंह के आक्रमण करने पर भी उसने अपनी आत्मरक्षा की थी।
राजा ने मधु का वध करने के लिए पदातिकों को भेजा । मधु ने उन सबको गुलेल से ही भगा दिया। पुनः राजा ने एक हजार घुड़सवारों को भेजा, परन्तु इस बार भी मधु ने उन्हें भगा दिया। जैतमाल. बड़ी निपुण सखी थी। उसने सोचा कि अब राजा बहुत बड़ी सेना भेजेगा । अतः मधु-मालती ने जैतमाल की सलाह से भ्रमर-मालतो-कूल का विस्तार किया। मालती की सुगन्ध से सैकड़ों भ्रमर आ गये। इस बार राजा ने पाँच हजार सेना भेजी, परन्तु भ्रमरकूल उनसे चिपक गया और सैनिकों के छक्के छूट गये। फिर राजा ने स्वयं युद्ध करने की ठानी। वह अपने हाथी-घोड़ों पर चमड़े मढ़वाकर युद्ध में आया। इस बार मालती घबड़ा गई तो जैतमाल ने कहा कि मधु काम एवं प्रद्युम्न का अवतार है अतः कृष्ण को याद करने से वे अवश्य सहायता करेंगे। मधु-मालती ने ऐसा ही किया। कृष्ण ने सहायतार्थ दो विशालकाय भारण्ड पक्षियों को और शिव-दुर्गा ने एक सिंह को भेजा। इनके आ जाने से राजा मधु-मालती का कुछ नहीं बिगाड़ सका।
राजा इस हार से बहत व्यग्र हआ और अपने मन्त्री तारनसाह से यह समस्या हल करने को कहा । मन्त्री को दुर्गा का वर प्राप्त था अतः उन्होंने सिंह और भारण्ड पक्षियों को रोक दिया। तारनसाह की प्रार्थना पर दुर्गा ने साक्षात् प्रकट होकर राजा की भूल बताई । उसे बताया कि मधु देवांश है, साधारण व्यक्ति नहीं। इसके बाद राजा ने अपनी भूल पर पश्चात्ताप किया और क्षमायाचना को तथा मालती और जैतमाल का विधिवत् विवाह करके उन्हें सारा राजपाट सौंप दिया। स्वयं वह गोकुलवास के लिए चला गया। इस प्रकार कथा का अन्त हुआ।
रूपमंजरी-प्रस्तुत रचना नन्ददासकृत सं० १६२५ की रचना है। निर्भयपुर के राजा की कन्या का विवाह एक क्रूर कुपुरुष से हुआ था। अपनी सखी की सलाह से अपने पूर्व पति को छोड़कर. वह कृष्ण से प्रेम करने लगी। अन्त में कृष्ण उसे प्राप्त हुए। हिन्दी-साहित्यकोश में श्री