Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ ग्रस्त व्यक्ति के लिए स्वयंभूदेव का 'पउमचरिउ' उनके प्रकर्ष में सहायक है। आवेग की तो यहाँ कोई कमी नहीं । दया, शोक, भय, साहस, धैर्य - सभी के प्रसंग महाकाव्य में विद्यमान हैं।" “महिलाओं के स्त्रीत्व की रक्षा हेतु उन महिलाओं को आदर्श रूप में रखने की आवश्यक है जो सदियों से आत्मिक विकास के अनमोल रत्न रही हैं। ' "अपभ्रंश भाषा के महाकवि स्वयंभू द्वारा रचित 'पउमचरिउ' काव्य की नायिका सीता भी ऐसा ही आदर्श रत्न है जो प्रत्येक महिला को सहज चित्त, शीलवान, गुणानुरागी तथा नीतिज्ञ बनने का सन्देश देती है । वह यह भी घोषणा करती है कि इन गुणों को अपनाकर आज भी वह विश्व के सन्दर्भ में भारतीय संस्कृति के लुप्त होते हुए गौरव को पुनः प्रतिष्ठित स्थान दिलवाने में समर्थ है। " 'पउमचरिउ' की सीता नारी-सुलभ सहजभावों से युक्त होने से सहजचित्त है। इस रूप में वह कभी भयभीत होकर करुण विलाप करती हुई अपने भाग्य को कोसती नजर आती है तो कभी मातृत्व भाव से शुभकामनाएँ देती हुई दिखती है। वही सीता रावण द्वारा हरण किये जाने पर राम से क्युिक्त होती है तो अपने शील की रक्षा के प्रयत्न में कठोर बन जाती है। उसके जीवन में शील के सौन्दर्य को विकृत करनेवाले अनेक उपसर्गकारी प्रसंग आते हैं किन्तु वह उपसर्गों की उस घड़ी में अविचलित होकर अपने शील की रक्षा तो करती ही है साथ ही उपसर्ग करनेवालों को भी प्रभावहीन कर देती है। शील-सौन्दर्य को मलिन करनेवाले ये उपसर्ग भिन्नभिन्न व्यक्तियों द्वारा भिन्न-भिन्न रूपों में हुए हैं। सीता ने भी अपने शील की रक्षा में उन्हीं उपसर्गों के ठीक अनुरूप भिन्न-भिन्न रूपों में ही अपने विवेक का उपयोग किया है । 66 इस तरह इन सहज, कोमल तथा शील की रक्षा में कठोर भावों से युक्त सौन्दर्य को प्राप्त सीता के जीवन के पक्षों को कवि स्वयंभू ने अपने 'पउमचरिउ' में बहुत ही सरल एवं सुन्दर रूप में संजोया है । " 'यद्यपि 'पउमचरिउ' तथा 'मानस' दोनों में ही अनेक अवान्तर प्रसंग आये हैं जो मूलकथा को गति प्रदान करने के साथ ही विभिन्नता भी प्रदान करते हैं परन्तु दोनों महाकाव्यों में मूलकथा एक होने के उपरान्त भी अवान्तर कथाएँ नितान्त भिन्न हैं । चरिउ में वर्णित अवान्तर कथाएँ इस प्रकार हैं - विभिन्न वंशों, यथा विद्याधर – इक्ष्वाकु इत्यादि की उत्पत्ति, भरत - बाहुबलि आख्यान, भामण्डल आख्यान, रुद्रभूति और बालिखिल्य की कथा, वज्रकर्ण तथा सिंहोदर की कथा, राजा अनन्तवीर्य की कथा, पवनंजय आख्यान, वरुणगाँव के कपिल मुनि, यक्षनगरी, कुलभूषण - देशभूषण मुनियों की कथाएँ इत्यादि । - मानस में अवान्तर कथाओं के अन्तर्गत जो कथाएँ ली जा सकती हैं वे इस प्रकार हैंशिव-पार्वती कथा, विश्वमोहिनी की कथा, मनु-शतरूपा आख्यान, कैकेयदेश के राजा प्रतापभानु के पूर्वजन्म की कथा, जय-विजय की कथा, कश्यप-अदिति आख्यान, निषादराज, गुह, भरद्वाज, (viii)

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 114