Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 8
________________ "भारत में राजनीतिक सत्ता के साथ-साथ भाषा में भी परिवर्तन होता रहा है। आर्यों के आगमन पर यह केन्द्र पश्चिम रहा । पुनः कौशल तथा मगध और अन्त में जब संस्कृत प्रधान भाषा हो गई तब पश्चिम में पुनः नवीन भाषाओं ने अपना विकास क्रम अपनाया। यह भाषावैज्ञानिक तथ्य है कि राजनीतिक, आर्थिक तथा धार्मिक केन्द्रोन्मुखता के कारण विविध स्थानीय बोलियाँ एक व्यापक राष्ट्रीय भाषा के रूप में ढल जाती हैं। अपभ्रंश का युग प्रायः छः सौ ईसवी से बारह सौ ईसवी तक माना जाता है। राजनीतिक सत्ता मगध के केन्द्र से हटकर प्राय: प्राचीन मध्यदेश में रही। कन्नौज तथा मथुरा के आस-पास के नगर सांस्कृतिक केन्द्र रहे। कभी यह धारा पश्चिमोन्मुखी होकर गुजरात एवं मालवा तक पहुँची।" सम्पादकीय " अपभ्रंश साहित्य अपनी युगचेतना से एकदम अछूता नहीं है। इनके कथानायकों में अपने युग के शासकों के स्वभाव, रुचि, रीति-नीति, विद्यानुराग और धार्मिक मनोवृत्ति लक्षित की जा सकती है।" " अपभ्रंश काव्य-परम्परा में महाकवि स्वयंभूदेव का 'पउमचरिउ' अपने मौलिक कथा-प्रसंगों एवं शिल्पगत विशेषताओं की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । पाँचों काण्डों - विद्याधर काण्ड, अयोध्या काण्ड, सुन्दर काण्ड, युद्ध काण्ड एवं उत्तर काण्ड के रूप में बँटी कथा की 90 सन्धियाँ अद्भुत काव्यप्रतिभा का परिचय है। भामह, दण्डी, रुद्रट एवं आचार्य विश्वनाथ द्वारा महाकाव्य के स्वरूप की प्रस्तुत की गई कसौटियों में कथानक, सर्ग-निबन्धन, महान् चरित्र अवतारणा, उत्कृष्ट एवं अलंकृत शैली, चतुर्वर्गसिद्धि, वर्ण्य वस्तु - विस्तार एवं रस - योजना महत्त्वपूर्ण है। स्वयंभू का 'पउमचरिउ' इन मानदण्डों पर खरा सिद्ध होते हुए रस- योजना की दृष्टि से अत्यन्त प्रभविष्णु है ।” " अभिव्यञ्जना का माध्यम है शब्द | स्वयंभूदेव शब्दों की आत्मा को, भाषा की बारीकियों को पकड़ते हुए अपभ्रंश भाषा के सूक्ष्म और गूढ़ नियमों का सावधानी से पालन करते है ।" "उदात्त अभिव्यक्ति के पाँच प्रमुख स्रोत माने गये हैं 1. महान् धारणाओं की क्षमता, प्रेरणा 2. - प्रसूत आवेग, 3. अलंकारों की समुचित योजना, 4. उत्कृष्ट भाषा 5. गरिमामय एवं अर्जित रचना - विधान । 'पउमचरिउ' में लगभग ये सभी स्रोत विद्यमान हैं । जीवनभर क्षुद्र उद्देश्यों एवं विचारों में (vii)

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