Book Title: Apbhramsa Bharti 1990 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती
अनुनासिक स्वर
स्वयंभूदेव की भाषा में चन्द्रबिन्दु तथा अनुस्वार दोनों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हुमा है जहाँ तक अनुस्वार के प्रयोग का प्रश्न है वहाँ सभी स्वर सभी स्थानों पर अनुनासिक नहीं मिलते । यथा
अन्त
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स्वर प्रयोग
अपभ्रंश में मूल स्वरों के अतिरिक्त अनेक स्वरों का संयोग भी पाया जाता है। संयोग से तात्पर्य है कि दो या दो से अधिक स्वरों की ऐसी समीप स्थिति जिसमें संधि कार्य न हो सके और दोनों स्वर स्पष्ट रूप से बिना कोई विकार उत्पन्न किये उच्चरित हों । स्वरसंयोग के अनेक उदाहरण आलोच्य कवि की भाषा में बराबर मिलते हैं। अधिकांश उदाहरण दो स्वरों के प्राप्त होते हैं किन्तु तीन और चार स्वरों के संयोगवाले उदाहरण भी देखे जा सकते हैं । दो स्वरों की संप्रयुक्ता निम्न उदाहरणों में द्रष्टव्य है
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