Book Title: Apbhramsa Bharti 1990 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 63
________________ 52 अपभ्रंश भारती (हालाहलु) 1/1 मरणु (मरण) 1/1 अच्छिउ (अच्छ-अच्छिा ) भूकृ 1/1 गम्पिणु! (गम+एपिणु गमेपिणु (ए का लोप)→गम्पिणु) संकृ गुहिल-वणे [ (गुहिल) वि-(वण) 7/1] गवि (अ)=नहीं रिणविसु-णिमिस (अ) पल भर वि (अ)=किन्तु रिणवसिउ (णिवस-+णिवसिम) भूकृ 1/1 प्रवहयणे [ (अवुह=प्रबुह) वि (यण) 7/1], (9) 1. गम् में संबंधक कृदन्तप्रर्थक प्रत्यय 'एप्पिणु' और 'एपि' को लगाने पर आदिस्वर 'एकार' का विकल्प से लोप हो जाता है। यहाँ बनना चाहिए 'गम्प्पिणु' पर यहाँ 'गम्पिणु' प्रयोग पाया जाता है, (हे. प्रा. व्या. 4-442) । (व्यक्तियों के द्वारा) (यदि) प्रहार किया गया है, (तो) अधिक अच्छा (है), (यदि) तप का आचरण किया गया (है), (तो) (भी) अधिक अच्छा (है), (यदि) हालाहल विष (पिया गया है), (तो) (भी) अधिक अच्छा (है), मरना (भी) अधिक अच्छा (है), गहरे वन में जाकर टिके हुए (होना) (भी) अधिक अच्छा (है), किन्तु पल भर (भी) मूर्ख जन में ठहरे हुए (रहना) (अच्छा ) नहीं (है)। 27.15 तो तिष्णि वि एम चवन्ताई । उम्माहउ जणहों जणन्ताइँ ॥1॥ दिण-पच्छिम-पहरें विरिणग्गयाई । कुञ्जर इव विउल-वरणहो गयाइँ ॥ 2 ॥ वित्थिण्णु रण्णु पइसन्ति जाव । रणग्गोहु महादुमु दिठ्ठ ताव ॥3॥ गुरु-वेसु करें वि सुन्दर-सराई । णं विहय पढावइ प्रक्खराइ॥4॥ वुक्करण-किसलय क-क्का रवन्ति । वाउलि-विहङ्ग कि-क्की भणन्ति ॥ 5 ॥ वरण-कुक्कुड कु-क्कू प्रायरन्ति । अण्णु वि कलावि के-क्कइ चवन्ति ॥ 6 ॥ पियमाहवियउ को-क्कउ लवन्ति । कं-का वप्पीह समुल्लवन्ति ॥7॥ सो तरुवर गुरु-गणहर-समाणु । फल-पत्त-वन्तु अक्खर-णिहाणु ॥8॥ घत्ता-पइसन्तेहि असुर-विमद्दणेहि सिरु णाम वि राम-जणदणे हि । परिपञ्चेवि दुमु दसरह-सुऐंह अहिणन्दिउ मुणि व सइंभुऍहि ॥ १॥ तो (अ)=तब तिष्णि (ति) 1/2 वि वि (म)=ही एम (अ)=इस प्रकार से चवन्ताई (चव+चवन्त) वकृ 1/2 उम्माहउ (उम्माहप्र) 2/1 'अ' स्वार्थिक जणहो। (जण) 6/1 जणन्ताई (जण+जणन्त) वकृ 1/2, 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर पष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) । विण-पच्छिम-पहरे [(दिण) - (पच्छिम) वि-(पहर) 7/1] विणिग्गयाई= विणिग्गयाइं (विणिग्गय) भूकृ 1/2 अनि कुञ्जर (कुञ्जर) 1/1 इव (अ)=की तरह विउल-वणहो [(विउल) वि-(वण) 6/1] गयाई=गयाइं (गय) भूकृ 1/2 अनि, (2)

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