Book Title: Apbhramsa Bharti 1990 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 115
________________ 104 अपभ्रंश भारती पाठ व माता पाठ 9 हउं=मैं क्रियाएं हस हंसना, रूस रूसना, जीव=जीना सय=सोना, लुक्क छिपना, गच्च=नाचना जग्ग=जागना हसमु/हसेमु सयमु/सयेमु णच्चमु/रणच्चेमु रूसमु/रूसेमु लुक्कमु/लुक्केमु जग्गमु/जग्गेमु जीवमु/जीवेमु विधि एवं प्राज्ञा =मैं हँसूं। =मैं सोवू । =मैं नाचूं । =मैं रूतूं। =मैं छिपूं। =मैं जागू। =मैं जीवू । हउँ जीना 1. हउं=मैं उत्तम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम) 2. विधि एवं प्राज्ञा के उत्तम पुरुष एकवचन में 'म' प्रत्यय क्रिया में लगता है । 'म' प्रत्यय . लगने पर क्रिया के अन्त्य 'म' का 'ए' भी हो जाता है। 3. जब किसी कार्य के लिए प्रार्थना की जाती है तथा प्राज्ञा एवं उपदेश दिया जाता है तो इन भावों को प्रकट करने के लिए विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय क्रिया में लगा दिए जाते हैं। 4. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ प्रकर्मक हैं । अकर्मक क्रिया वह होती है जिसका कोई कर्म नहीं होता है और जिसका प्रभाव कर्ता पर ही पड़ता है । 'मैं हँसू' में 'हँसू' का पूरा संबंध 'मैं' से ही है, इसमें 'हँसू' का कोई कर्म नहीं है । उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता 'हउं' के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और वचन हैं। यहां 'हउं' उत्तम पुरुष एकवचन में हैं तो क्रियाएँ भी उत्तम पुरुष एकवचन में हैं।

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