Book Title: Apbhramsa Bharti 1990 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 105
________________ 94 अपभ्रंश भारती रगच्च-नाचना जग्ग=जागना पाठ 1 हर=मैं क्रियाएँ हस हँसना, सय सोना, रूस रूसना, लुक्क छिपना, जीव=जीना, वर्तमानकाल हउं हसउं/हसमि/हसामि/हसेमि हर सयउं/सयमि/सयामि/सयेमि णच्च/णच्चमिणच्चामिणच्चेमि रूस/रूसमि/रूसामि/रूसेमि हउँ लुक्कउं/लुक्कमि/लुक्कामि/लुक्केमि जग्गउं/जग्गमि/जग्गामि/जग्गेमि हउँ जीव/जीवमि/जीवामि/जीवेमि =मैं हंसता हूँ/ हँसती हूँ। =मैं सोता हूँ/सोती हूँ। =मैं नाचता हूँ/नाचती हूँ। =मैं रूसता हूँ/रूसती हूँ। =मैं छिपता हूँ/छिपती हूँ। =मैं जागता हूँ/जागती हूँ। =मैं जीता हूँ/जीती हूँ। हउं-मैं, उत्तम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन में उं और मि प्रत्यय क्रिया में लगते हैं । 'मि' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'प्र' का प्रा और ए भी हो जाता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं। अकर्मक क्रिया वह होती है जिसका कोई कर्म नहीं होता और जिसका प्रभाव कर्ता पर ही पड़ता है । 'मैं हँसता हूं' इसमें हँसने का प्रभाव 'मैं' पर ही पड़ता है। इस वाक्य में हंसने की क्रिया का कोई कर्म नहीं है। 4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । इनमें कर्ता हर्ष के अनुसार क्रियाओं के पुरुष मौर वचन हैं । यहां हउं उत्तम पुरुष एकवचन में है तो क्रियाएं भी उत्तम पुरुष एकवचन में हैं।

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