Book Title: Apbhramsa Bharti 1990 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 97
________________ 86 अपभ्रंश भारती 5. तैजस बिब तैजस अथवा अग्निसंबंधी बिंबों का प्रयोग स्वयंभू ने अधिक नहीं किया है । क्रोध के भाव की अभिव्यक्ति में कवि ने अग्नि के बिंब का प्रयोग किया है । शत्रु-सेना की बातें सुनकर लक्ष्मण प्रदीप्त हो उठता है, मानो घी पड़ने से प्राग भड़क उठी हो। ___ तं वयण सुरणेप्पिण हरि पलित्तु । उद्धाइउ सिहि रणं घिएण सित्त ॥ 29.9.2 हनुमान द्वारा उद्यान के उजाड़ देने की बात सुनकर रावण क्रोधित होता है मानो किसी ने आग में घी डाल दिया हो । तं रिणसुणेप्पिण दहवयणु कुविउ दवग्गि व सित्तु घिएण। 51.9.10 वीरों के युद्धोत्साह की अभिव्यंजना में कवि स्वयंभू ने बार-बार प्रलयाग्नि का बिंब खड़ा किया है। 6. ऋतु एवं काल संबंधी बिब ऋतुओं में प्राय: सभी ऋतुओं के बिंब स्वयंभू ने प्रस्तुत किये हैं। फाल्गुन का महीना बीत चुका था और वसंत राजा कोयल के कलकल मंगल के साथ आनंदपूर्वक प्रवेश कर रहे थे । भ्रमररूपी बंदीजन मंगलपाठ पढ़ रहे थे और मोररूपी कुब्ज वामन नाच रहे थे । इस तरह अनेक प्रकार के हिलते-डुलते तोरण-द्वारों के साथ वसंत राजा आ पहुंचा । कहीं आम के पेड़ों में नये किसलय फल-फूलों से लद रहे थे । कहीं कांतिरहित । पहाड़ों के शिखर काले रंगवाले दुष्ट मुखों की तरह दिखाई दे रहे थे । कहीं वैशाख माह की गर्मी से सूखी हुई धरती ऐसी जान पड़ती थी मानो प्रिय-वियोग से पीड़ित कामिनी हो । .............................'फग्गुण-मासु पवोलिउ तावे हिं॥ पइठु वसंतु-राउ पारणंदें । कोइलु - कलयल - मंगल-सदें ॥ अलि-मिहुणे हि वंविणे हि पढ़तेहिं । वरहिण-वावणे हि पच्चंतेहिं ।। अंदोला - सय - तोरण - वारहिं । ढुक्कु वसंतु अणेय-पयारे हि ॥ कत्थइ चूम - वरण पल्लवियइँ । णव-किसलय-फल-फुल्लन्भहियइँ॥ कत्थइ गिरि सिरहइँ विच्छायई । खल मुहई व मसि-वण्णइं गायई ॥ कत्थइ माहव मासहों मेइरिण । पिय-विरहेण व सूसइ कामिरिण ॥ 26.5.1-7 पावस और ग्रीष्म का यह बिंब देखिए जब पावस राजा ने गर्जना की तो ग्रीष्म राजा ने धूलि का वेग छोड़ा, वह जाकर मेघ-समूह से चिपट गया । परन्तु पावस राजा ने बिजली की तलवारों के प्रहार से उसे भगा दिया। जब वह धूलिवेग (बवंडर) उलटे मुंह लौट आया तो ग्रीष्म-वेग पुनः उठा । धगधगाता और हस-हस करता हुआ वह वहाँ पहुंचकर जल-जल कर प्रदीप्त हो उठा । उससे चिनगारियाँ

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