Book Title: Apbhramsa Bharti 1990 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 44
________________ स्वयंभू और पक्ष-विचार -डॉ. छोटेलाल शर्मा 1.1 क्रिया के जिस रूप से व्यापार की विभिन्न स्थितियां, दशाएं या प्रक्रियाएं प्रतिभात होती हैं उसे 'पक्ष' कहते हैं। क्रिया माध्यम है और 'पक्ष' व्यापार की सूक्ष्म अवस्थाओं एवं कार्य-संपादन के विभिन्न भावों का प्रत्यायक-प्रदर्शक । इसलिए 'हॉकेट' 'पक्ष' को 'क्रिया की परिरेखा या समोच्च रेखा' कहता है ।1 'पक्ष' शब्द अंग्रेजी शब्द 'एस्पेक्ट' का रूपान्तर है और 'एसपेक्ट' रूसी शब्द 'विद' का । अंग्रेजी के इस शब्द की पाश्चात्य भाषाव्याकरगणों और विवेचनाओं में अनेक व्याख्याएं हैं। इसलिए इसके प्रयोग में विविधताजन्यभ्रांति का घटाटोप है। एक अोर रूप-रचना के छाए रहने के कारण 'प्रेजेंट सिस्टम', 'एग्रोरिस्ट सिस्टम' 'परफेक्टिव सिस्टम' आदि लकार-वर्गीकरण विद्यमान थे और इनके प्रभाव से 'ग्रीक' और 'अंग्रेजी' में लिखे 'हिटनी' के संस्कृत व्याकरण तक में 'इम्परफेक्टिवफार्म', 'एग्रोरिस्ट फॉर्म' प्रादि का प्रयोग हया है तथापि 'इम्परफेक्ट' के रूप वस्तुतः 'परफेक्टिव एस्पेक्ट' के हैं। इसी प्रकार अंग्रेजी के लकार के नाम 'प्रेजेन्ट परफेक्ट', 'पास्टपरफेक्ट' यह भ्रांति उत्पन्न करते हैं कि यहां 'परफेक्टिव एस्पेक्ट' है, यद्यपि वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। हिन्दी व्याकरण में 'पक्ष' पर कोई विचार नहीं है क्योंकि अंग्रेजी भाषा के अपने व्याकरणों में भी यह पृथक् संकल्पना नहीं थी और न ही संस्कृत व्याकरणों में । प्राकृत और अपभ्रश के व्याकरणों और विवेचनाओं में भी इस पर विचार नहीं है क्योंकि ये व्याकरण भी संस्कृत व्याकरण के अनुकरणों पर लिखे गए । प्राकृत ने ध्वनि ही बदली थी अपभ्रंश ने संरचना भी और अपने को देशी भी घोषित किया, फिर भी प्रभाव बना ही रहा

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