Book Title: Apbhramsa Bharti 1990 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 41
________________ 30 कुन्द ग्रहमिन्दहु विसहरिन्द रिन्दहुं ईन्दु पंचिन्दिय कम्मिन्धणइं चामरिन्द सोहिल्ल दिट्ठी रिट्ठी भरतेश्वर परमेश्वर जिनेश्वर विमलेक्षु कुन्द + इन्दु हम + इन्द विसहर + इन्द गर + इन्दहुं ईसारण + इन्दु पंच - इन्दिय कम्म+इन्धराई चामर + इन्द सोह + इल्लं दिठ्ठी + ई रिट्ठ + ई तडुज्जल हत्थुत्थलिय सव्वजणुच्छवेरण गाणुज्जलु जम्पत्ति णीलुप्पल भर हेसर हो परमेसर हो जिणेसरेण farara भर ह + ईसर हो परम + ईसर हो जिण + ईसरे विमल + क्खुक्व अपवाद अ + ई = ए, अ + ई = ए इसके उदाहरण भी मूलतः संस्कृत के उदाहरण हैं जो सह-संधि अपभ्रंश की ध्वनियों से निर्गत हैं । इसमें संधि का कोई मूल प्राकार नहीं दीख पड़ता इसलिए ये उदाहरण भी अ +इ = इ, अ + ई = ई नियम को खण्डित नहीं करते । केसर + उग्घवियं कव्व + उप्पलं सुरभवण + उच्छलिय णारण + उग्ग महो तड + उज्जल हत्थ + उत्थलिय सव्वजण + उच्छवेण अ + इ = इ 3.1 अ इइ 3.4 अ णाण - उज्जलु जम्म+ उप्पत्ति गील + उप्पल इइ 3.4 अपभ्रंश-भारती अ - इ इ 3.4 अ - इ इ 3.5 अ +इ = इ 3.2 अ - इ इ 3.3 अ + इ = इ 3.3 अइ मं. अ + ई = ई मं. अ - ई = ई 1.14.9 नियम – 4 इसी पूर्वलिखित नियम के आधार पर प्र स्वर के परे उ स्वर हो तो पूर्ववर्ती प्र का लोप हो जाता है और परवर्ती उ अपने मौलिक स्वरूप में विद्यमान रहता है अर्थात् अ +उ = उ, यथा केसरुग्घवियं कव्वुप्पलं सुरभवच्छ लिय मह अ + ई = ए 3.13 अ + ई = ए 3.13 अ + ई = ए 4.13 अ- ! - ई=ए 5.1 अ +उ = उ 1 अ +उ = उ 1 अ +उ = उ 1.1 अ +उ = उ 1.1 अ +उ = उ अ +उ = उ अ + उ उ अ +उ = उ अ +उ = उ अ +उ = उ 1.2 1.3 1.5 1.7 1.16 2.2

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