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कुन्द
ग्रहमिन्दहु
विसहरिन्द
रिन्दहुं
ईन्दु
पंचिन्दिय
कम्मिन्धणइं
चामरिन्द
सोहिल्ल
दिट्ठी
रिट्ठी
भरतेश्वर
परमेश्वर
जिनेश्वर
विमलेक्षु
कुन्द + इन्दु
हम + इन्द
विसहर + इन्द
गर + इन्दहुं
ईसारण + इन्दु
पंच - इन्दिय
कम्म+इन्धराई
चामर + इन्द
सोह + इल्लं
दिठ्ठी + ई
रिट्ठ + ई
तडुज्जल हत्थुत्थलिय
सव्वजणुच्छवेरण
गाणुज्जलु
जम्पत्ति
णीलुप्पल
भर हेसर हो
परमेसर हो
जिणेसरेण
farara
भर ह + ईसर हो
परम + ईसर हो
जिण + ईसरे विमल + क्खुक्व
अपवाद
अ + ई = ए, अ + ई = ए
इसके उदाहरण भी मूलतः संस्कृत के उदाहरण हैं जो सह-संधि अपभ्रंश की ध्वनियों से निर्गत हैं । इसमें संधि का कोई मूल प्राकार नहीं दीख पड़ता इसलिए ये उदाहरण भी अ +इ = इ, अ + ई = ई नियम को खण्डित नहीं करते ।
केसर + उग्घवियं कव्व + उप्पलं
सुरभवण + उच्छलिय णारण + उग्ग महो
तड + उज्जल
हत्थ + उत्थलिय
सव्वजण + उच्छवेण
अ + इ = इ 3.1
अ इइ 3.4
अ
णाण - उज्जलु
जम्म+ उप्पत्ति
गील + उप्पल
इइ 3.4
अपभ्रंश-भारती
अ - इ इ 3.4
अ - इ इ 3.5
अ +इ = इ 3.2
अ - इ इ 3.3
अ + इ = इ 3.3
अइ मं.
अ + ई = ई मं.
अ - ई = ई 1.14.9
नियम – 4
इसी पूर्वलिखित नियम के आधार पर प्र स्वर के परे उ स्वर हो तो पूर्ववर्ती प्र का लोप हो जाता है और परवर्ती उ अपने मौलिक स्वरूप में विद्यमान रहता है अर्थात्
अ +उ = उ, यथा
केसरुग्घवियं
कव्वुप्पलं सुरभवच्छ लिय
मह
अ + ई = ए 3.13
अ + ई = ए 3.13
अ + ई = ए 4.13 अ- ! - ई=ए 5.1
अ +उ = उ 1
अ +उ = उ
1
अ +उ = उ
1.1
अ +उ = उ
1.1
अ +उ = उ
अ +उ = उ
अ + उ उ
अ +उ = उ
अ +उ = उ
अ +उ = उ
1.2
1.3
1.5
1.7
1.16
2.2