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________________ अपभ्रंश भारती कोपानल नराधिप शून्यारभ्य लब्धावसर गुणालङ्करिएं संसाराराएं चुगास सव्वाहरण सुविणावलि धरणंजयासिय कोवारणल गराहिउ अ + श्राश्रा, यथा परमायरिय भवियाया परमागम कमागय कम + आगय पवाहावङ्गिय पवाह + प्रावङ्गिय पुलिणालय पुलिण + प्रालकिय चन्दाणण भोयासत्तउ सुगारष्णु लद्धावसरेहि पुण्णाउस रणट्टारम्भु गोउराई मन्दिराई देवाविय नियम - 2 नियम को भाँति ही यदि श्र स्वर के परे श्रा स्वर हो तो पूर्ववर्ती श्र का लोप हो जाता है और परवर्ती या अपने मूलरूप में सुरक्षित रहता है, अर्थात् कोव + प्रणल र + हिउ सुष्ण+ धरण्णु लद्ध + प्रवसरेहि परम + आयरिय भविय + आयर परम - आगम गुण + प्रालङ्करिएं संसार + आराएं चुष्ण+प्रासङ्गे सव्व + श्राहरणु सुविरण + प्रावलि धरणंजय + प्रासिय चन्द + रणरण भोय + आसत्तउ पुण्ण + ग्राउस रगट्ट + आरम्भु गोउर + आई मन्दिर + आई देव + श्राविय परवर्ती अपने मूलरूप में सुरक्षित रहता है, पर्यात् इ प्र + इ = इ, प्र + ई = ई, यथामहिहरिन्दु जिवरिन्दु महिहर + इन्दु जिणवर + इन्दु अ + अ = श्रा 4.4 अ + अ = 4.12 अ + अ = श्रा 5.4 अ + अ = 5.12 - - अ + आ = श्रा अ + आ = श्रा अ + आ = अ + आ = अ + आ = अ + आ = अ + आ = श्रा अ + आ = नियम - 3 इसी प्रकार छ स्वर के परे इ स्वर हो तो पूर्ववर्ती का लोप हो जाता है और 1.1 1.1 1.2 1.2 1.2 1.2 1.2 अ + आ = 1.5 अ + आ = 1.14 अ + म्राया 1.14 अ + आ = श्रा 1.16 अ + मा 2.9 प्र + आ = श्रा 2.9 अ + आ = 2.9 अ + श्रा = श्रा 2.9 अ + आ = अ + आ = अ + आ = 1.7.7 1.7.7 1.8.3 29 अ+इइ 1.7 अ +इ = 1.16
SR No.521851
Book TitleApbhramsa Bharti 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1990
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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